बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ फिर छोड़ कर चुप हो जाओ  .........??? 
                                                  अमूमन जब भी चुनाव आते हैं पार्टियां अपनी अपनी सरकारें बनाने के लिए कई तरह के जुमले उछाला करती हैं।  यह जगविदित सत्य है। जो भी वादें होतें है उनमे से वह तमाम वादें जो विकास या उन्नति से जुड़े हों वह देर सवेर पूरें हों तो भी कोई ज्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता परन्तु जो वायदे सुरक्षा और रखरखाव से जुड़े हों उनके बारे में संजीदा होना बहुत जरूरी है। यह मैं इस लिए कह रही हूँ कि तत्कालीन सरकार ने "बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ " नाम का नारा बुलंद किया था।  सुन कर ये लगा कि अब बेटियों के दिन बदल जायेंगे।  सुकून से 
जन्म लेंगी , बढ़ेंगी , पढेंगी और माता पिता के लिए गर्व बनेंगी ।  
                                                                  कुछ समय से जो देखने को मिल रहा है वह भयावह ही नहीं दहशतपूर्ण है।  बेटियों के बलात्कार खुले आम हो रहे।  सत्ताधीन पार्टियों के एम.एल.ए और नेता ही बेटियों के भक्षक बन रहें है।  यह स्थति अब तो सामान्य सी हो चली है।  इसमें जो सबसे ज्यादा दुखद बात है वह ये कि सम्बंधित थाने में परिवार द्वारा शिकायत करने पर पीड़ित परिवार को ही और प्रताड़ित किया जाता है। यहाँ तक कि शिकायतकर्ता मरने की कगार पर पहुँच जाता है। अभी हाल ही में एक पिता जो अपनी बेटी के बलात्कार के खिलाफ शिकायत करने थाने गया , अत्यधिक पिटाई से आहत होकर मर गया। पोर्ट मार्टम की रिपोर्ट ने जाहिर किया की अत्यधिक पिटाई से उसकी आंतें फट गयी।  अंत हो गया एक गुहार का। इसी तरह जम्मू के कठुआ इलाके में  , एक आठ वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार हुआ। उसके बाद उसके शरीर को क्षत विक्षत करके फेंक दिया गया। अब उसको ढकने की राजनीति पुरे जोरों- शोरों पर चल रही है। यहाँ तक कि थाने में रिपोर्ट करने पर उन्होंने पर्याप्त साक्ष्य न होने से कुछ भी दर्ज़ करने से मना भी कर दिया। ऐसे में न्याय की उम्मीद करना हास्यास्प्रद नहीं तो और क्या ........... ???
                                                      

बेटियां शायद जन्मती ही इस लिए हैं की वह किसी न किसी के द्वारा शोषित की जाएँ। आजकल जो स्थति भारतीय व्यवस्था में पनपने लगी है वह इस और इशारा कर रही है कि तुम पैदा करो और तुम्हारी बेटियां अब हमारी .......क्यों जन्म के समय ही माँ ईश्वर से मनाने लगती है कि उसकी कोख से बेटा ही देना।  इस के पीछे के कारण कोई नहीं समझता , न ही उन्हें दूर करने के प्रयास किया जाते हैं। बस एक ही जुमला बेटी पैदा करो।  किस लिए ..??  कि तुम्हारा घर कैसे चलेगा , तुम्हारा वंश कैसे बढ़ेगा , तुम्हारी शरीरिक भूख कैसे शांत होगी ,  तुम्हारा परिवार कैसे पलेगा - और समाज में बनेगा , तुम्हारे अपनों की देखभाल कैसे होगी  , जैसी तमाम जरूरतें  ??? एक बच्ची बड़ी होकर औरत बन कर तुम्हे ये तमाम सुख जो देगी , इस लिए पैदा करो।  शर्म आती है इस सामाजिक व्यवस्था पर  जिसमें औरतों की सिर्फ इतनी ही अहमियत है। पैदा करो और कुर्बान हो जाओ।  फिर भी उफ़ न करो.............. 

Comments