बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श में अंतर कब और कैसे समझाएं ...................??
बच्चों का खिलखिलाता बचपन , उनकी मासूमियत , बचकानापन और भोली मुस्कुराहट एक पूंजी की तरह  होती है।  जिसे संजों कर बनाये रखना हम सभी बड़ों का कर्तव्य बनता है क्योंकि उनके साथ ही हम बड़े भी एक बार फिर से अपना बचपन जी पाते हैं। हमारी व्यस्तता और रोजमर्रा की जद्दोजहद ने हमें खुद से अलग तो किया ही है परन्तु अब हम अपने बच्चों के प्रति भी असंवेदनशील होते जा रहें हैं। यही वह सत्य है जिसका परिणाम आजकल बच्चों के प्रति हो रहे अपराधों में निरंतर बढ़ोतरी के रूप में दिखाई दे रहा है। बच्चे जन्म से ही सब कुछ सीख कर पैदा नहीं होते हैं । साथ ही सबसे बड़ी समस्या ये भी है कि हम उन्हें सब कुछ समय से पहले बता भी नहीं सकते। इस लिए वह अनजान अक्सर भुलावे में आकर अपराध का शिकार बन जातें हैं।  यह अपराध उनके बचपन के भोलेपन का फायदा उठाते हुए किया जाता है। इसलिए यह सोचना आवश्यक है कि ऐसा क्या करना चाहिए कि उनका बचपना बनाये रखते हुए हम उन्हें सही या गलत का अंतर समझा सकें।
                                                          इस समस्या का मूल कारण जानने  के लिए पहले एक छोटे बच्चे की मनःस्थिति के बारे में समझा जाए। एक नवजात शिशु बड़ा होते होते आस पास की तमाम घटनाओं को देखते हुए सब कुछ सीखता और समझता है। उसे अपनी मातृभाषा सिखलाने की  जरूरत नहीं पड़ती। घर परिवार में सभी को बोलते  , सुनते वो भी विद्यालय जाने से पहले ही अपनी भावनाएं बोल कर व्यक्त करना सीख जाता है। वह जो भी समझता और जानने की कोशिश करता है उसी के आधार पर उसका भविष्य निर्धारित होता है। परिवार के तमाम सदस्य उस समय उसके लिए एक किरदार की तरह होते हैं। जो उसके आगे के जीवन के चलचित्र  की रूपरेखा बना रहे होते हैं। इस पूरी बात का अर्थ ये है की हर बच्चा अपनों से ही अपने आगे के जीवन के बारे में जानता और समझता है। इसलिए सबसे पहले हमारा दायित्व है कि हम अपने बच्चों को अच्छा या बुरा समझने के लिए कैसे तैयार करें। एक बात ये भी समझनी आवश्यक है कि हर उम्र की भाषा का एक अलग स्तर होता है। इस स्तर के अनुसार ही हम शब्दों का चुनाव करके उन्हें सही और गलत के बीच का फ़र्क़ बताएं तभी वह इसे आसानी से समझ पाएंगे।                                                                                                                                                         मोबाइल क्रांति ने आज हर घर और हाथ में इंटरनेट की सुविधा पहुंचा दी है। इसके बेहतर प्रयोग के नजरिये से देखें तो यह एक वरदान की तरह है। जिसमें जानकारियों का भण्डार भरा हुआ है। परन्तु कुल 25 से 30  प्रतिशत लोग ही इसका सही मायनों में सदुपयोग करते हैं।  जबकि आज इसके दुरुपयोग से लोगों की भावनाएं ज्यादा दूषित हो रहीं है। इंटरनेट पर मौजूद तमाम वयस्क जानकारीयों ने आज छोटे छोटे बच्चों को भी उम्र से पहले बड़ा बना दिया है और वह उस दुनिया को समय से पहले देखना और पाना चाहते हैं जिसकी उम्र आने में अभी देरी है। बच्चों के प्रति बढ़ते अपराधों का यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है। वयस्क होते युवा भी इन्ही दुष्परिणामों का शिकार होकर अपनी इच्छापूर्ति के लिए गलत रास्तों को अपनाने से नहीं डरते। इसलिए देखा जाए तो हम आप इस बदल रहें सामाजिक और तकनीकी ढांचें को नहीं सुधार सकते। पर हमें अपने छोटे बच्चों को मन से , तन से और परिस्थतियों से इतना मजबूत बना सकते हैं कि वह ऐसी घटनाओं को समय रहते समझ सकें और उससे अपना बचाव कर सकें।
                                                                     
इसके लिए हमें अपने छोटे बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श में अंतर की कुछ मुख्य बातें बहुत ही सरल शब्दों में समझानी होंगी :

नंबर 1 . शर्म महसूस होना -  जब भी कोई अपरिचित स्पर्श करें और इससे खुद को शर्म या झिझक महसूस हो तो यह गलत स्पर्श हो सकता है।

नंबर 2 . उदासी - जब किसी अनजान के छूने  से या संपर्क में आने से मन में उदासी  या घबराहट महसूस हो तो यह गलत स्पर्श है।
नंबर 3 . गन्दगी जब भी किसी के स्पर्श के बाद कुछ गन्दा सा महसूस हो और लगने लगे कि शरीर गन्दा सा हो गया है तो यह गलत स्पर्श है। 
नंबर 4 . डर  - जब कभी किसी अनजान के साथ बैठने में डर महसूस हो और उसके छूने से बदन में कँपकपी सी आये तो यह भी गलत स्पर्श है।
 नंबर 5.  संकोच  - जब किसी अपरिचित के छूने से शरीर सिकोड़कर दूर हट जाने का मन करे तो यह गलत स्पर्श हो सकता है।
नंबर 6 . उधेड़बुन जब कभी किसी स्पर्श के बाद ये महसूस हो की इसे किसी को कैसे बताएं  और क्या बताएं , तो ये गलत स्पर्श हो सकता है। 
नंबर 7. शर्मिंदगी -  किसी अनजान के छूने  के बाद ये जानते हुए भी कि अपनी गलती नहीं है फिर भी शर्मिंदगी का अहसास हो तो यह गलत स्पर्श है। 
नंबर 8. अनमनापन -  जब रोज के किसी काम में मन न लगे और बार बार वही सब कुछ याद आता रहें तो यह गलत स्पर्श है।                                 
                                         ये कुछ साधारण किन्तु महत्वपूर्ण बिंदु है। जिन पर प्रत्येक माता पिता और स्कूल के अध्यापक चर्चा कर के बहुत छोटे बच्चो को इस खतरे से पहले ही आगाह कर सकते हैं। इसे आसान बना कर प्यार से अपने शब्दों में उन्हें धीरे धीरे समझाना चाहिए। जिससे वह गलत और सही व्यक्ति में फर्क कर सकें। इससे हम अपने बच्चों को आस पास घूमते इंसान रुपी जानवरों से बचा सकते हैं। वह छोटे बच्चे जिन्हें ये समझ भी नहीं है कि उनके साथ कुछ ऐसा भी हो सकता है। बच्चे मासूम हैं। ये ऐसे किसी भी कार्य को सही या गलत की श्रेणी में विभाजित नहीं कर पाते। ये सारी गंदगी उनकी सोच समझ से बहुत परे हैं। ऐसे में सबसे पहले बच्चे को यह समझाया जाना जरूरी है कि किसी बड़े दूसरे की कौन सी गतिविधि उसके बचपने और भोलेपन का फायदा उठा सकती है। 

यह सिखाये जाने के लिए कुछ सामान्य सी आवश्यक तरकीबें : 


पहली :  बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श में अंतर समझाने के लिए सबसे पहले तो बच्चों को माता पिता के स्पर्श से होने वाली अनुभूति के बारे में पूछा जाए। उन्हें यह महसूस कराएं कि माँ पिता के स्पर्श से उन्हें कैसा महसूस होता है। बच्चों को माता पिता के चिपकाये जाने से मिलने वाली ख़ुशी को समझने का मौका दिया जाए। जिससे वह सबसे पहले एक अच्छे स्पर्श को पहचानना सीखेंगें और समझेंगें । 

दूसरी :   अब बच्चों को खुल कर अपनी बात अपने माता पिता से कहने के लिए मजबूत बनायें । कोई भी बात ,कैसी भी बात , कभी भी और कहीं भी। यह विश्वास बच्चें में जगाना होगा कि हम बड़े उनकी सभी बातों को सुनने और समझने के लिए हर समय तैयार हैं। 
तीसरी :  अब दूसरों के छूने से महसूस हो रही भावनाओं की भी हमेशा जानकारी लेते रहना चाहिए। यदि बच्चा खुल कर कुछ नहीं भी कह पाता हो तो हम बड़ों को ही आगे बढ़ कर उसके मन की जानते रहने की कोशिश करना चाहिए। 
चौथी :  बच्चों को गलत स्पर्श के बारे में बताने और निजी अंगों की जानकरी देने के लिए गुड्डे गुड़िया का प्रयोग भी किया जा सकता हैं। खेल खिलौनों में रूचि होने से वह इसे खेल की ही तरह समझ कर स्वीकार भी करेंगे और समझेंगे भी।
पांचवी : शरीर के वह अंग जो हमेशा कपड़ों से ढंके रहते हैं उनके ढके रहने का कारण बताया जाना चाहिए और साथ ही उम्र के अनुसार उसमें आने वाले छोटे मोटे बदलाव की भी जानकारी देनी चाहिए। 
छठी :  माँ यह काम छोटे बच्चों को नहलाते हुए भी कर सकती है। वह यह समझा सकती है कि सिर्फ माता पिता ही उसे इस तरह देख और छू सकते है  क्योंकि वही उसे इस दुनिया में ले कर आएं हैं और सब ज्यादा करीबी हैं।  
सांतवी :  छोटे बच्चों को सबसे पहले यह समझाया जाना बेहद जरूरी है कि चॉकलेट , मिठाई या टॉफी जैसी कोई भी चीज के लालच में किसी दूसरे के चक्कर में ना आयें। ऐसी कोई भी इच्छा अपने माता पिता को बतायें । माता पिता को भी बच्चे को यह विश्वास दिलाना होगा कि उसकी मांग उनके द्वारा जरूर पूरी होगी। 
आंठवी :   बच्चों को यह समझाया जाना बेहद जरूरी है कि यदि कोई भी अपरिचित कुछ गलत हरकत करते हुए महसूस हो तो बिना डरे तुरंत अपने घर के बड़ो से आ कर बताने को कहा जाए। इसमें उन्हे कोई गलत नहीं समझेगा और वह पूरी तरह निर्दोष हैं , यह उन्हें समझाना होगा। 
नवीं :   बच्चों को घर के आस पास ही अपने हमउम्र बच्चों के साथ ही खेलने को कहा जाये। उन्हें दूर जाने ,किसी अपरिचित से बातचीत न करने और ज्यादा करीब न जाने की सख्त हिदायत दी जाए। 
 दसवीं : यह कोई जरूरी नहीं कि इस तरह की घटना में कोई अपरिचित शामिल हो।  सामान्यतः घर के या कोई अन्य करीबी सदस्य भी ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं। इसलिए बच्चों को उनके निजी अंगों को ढके रखने और किसी भी लालच या प्रेम के दिखावे में आ कर अकेले में न जाने की हिदायत दी जाए। 
                    अब हम सभी माता पिता का यह भी फ़र्ज़ है कि हम अपने बच्चों पर पूरा ध्यान दें।  उन्हें नजरअंदाज न होने दें।  जब तक वह ठीक से सब कुछ समझने लायक न हो जाएँ , उनके ऊपर पूरी तरह ध्यान रखना , हमारा ही फ़र्ज़ है।  हमें अपने छोटे बच्चे के सोच और व्यव्हार में आ रहे बदलावों पर ध्यान देना चाहिए। उनकी कार्यशैली और तौर तरीकों को समझते रहना चाहिए और इस तरह का माहौल बनाना चाहिए कि वो इस तरह की घटनाओंको पहले से समझ पाने के लिए जागरूक रहे। बच्चें के लिए घर का माहौल तो अच्छा बनाया जा सकता है पर गलत संगत से भी बचाये रखना भी बेहद जरूरी है। क्योंकि इस समस्या का दूसरा पहलु ये भी है कि हम अपने बच्चों का बचपना कैसे बचायें  । आज ऐसा माहौल बनाने की जरूरत है कि हमारे बच्चे इस बारे में जो कुछ जानें और सीखें ,उसका जरिया हम हों , दूसरे माध्यम नहीं ,  क्योंकि जो हम उन्हें सिखायेगें वही उनके लिए सबसे सही होगा। और इसी के साथ उन्हें वह ज्ञान उसी समय पर मिलेगा जबकि उसके सीखे जाने की उन्हें जरूरत होगी। उम्र का हर मोड़ एक एक नयी पहचान के साथ आगे बढ़ता है । अपने बच्चों का इस पहचान से परिचित कराना हम बड़ों का फ़र्ज़ बनता है। इस लिए सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि हम अपने बच्चों के लिए जानकारियों का माध्यम बने।  हमारी दी गयी जानकारी उनकी उम्र , सोच , समझ के अनूकूल होगी।  जिससे उनका बचपन भी बरक़रार रहेगा और उस जानकारी के प्रति वो सजग भी रहेंगे। 
                

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