जिंदगी से गुजारिश....!!

मुझे तैरने दे या फिर बहना सिखा दे,
अपनी रजा में  अब तू रहना सिखा दे,
          मुझे शिकवा ना हो कभी भी किसी से,
           ऐ कुदरत बस इतना रहम कर कि ,
          मुझे सुख और दुख के पार जीना सिखा दे ।
इच्छाओं का भी अपना चरित्र होता है ,
रंग बदलते रहने का सा चित्र होता है।
            जो खुद के मन की हो तो अच्छी लगती हैं,
           दूसरों के मन की हो तो बहुत खटकती हैं
           जिंदगी ऐसा कर खुद में सिमटना सीखा दे।
केवल जिद की बस एक गांठ छूट जाए ,               
उलझे हुए सब रिश्ते खुद ही सुलझ जाए ।
               उलझने को जिंदगी , समझने को उम्र 
              जिंदगी में वक्त ये कैसी पहेली दे गया
               खुदा इस पहेली को सुलझाना सीखा दे।
तमन्ना ने पूछा , मै कब पूरी होउंगी ?
जिंदगी ने भी हँसकर जवाब दिया
जो पूरी हो जाये वो तमन्ना ही क्या !
        कौन कहता है कि हम झूठ नही बोलते,
        सिर्फ एक बार खैरियत तो पूछ के देखिये
       तमन्नाओं को मार कर मुस्कुराना सीखा दे।
जिंदगी को समझना जरा मुश्किल तो है,                 कोई सपनों की खातिर अपनों से दूर
कोई अपनों की खातिर सपनों से दूर ।
                 पेड़ की मानिंद रोज गिरते है पत्ते मेरे
                 फिर भी हवाओं से रिश्ता बरकार है।
                 मुझे इन झोकों में लहराना सीखा दे।
                   

     

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