छोटे मंझोले व्यापारियों की त्रासदी 😑😣🙄

छोटे-मंझोलेव्यापारों की त्रासदी 
•••••••••••••••••••••••••••

राजनीति की सबसे बड़ी कमी है कि लोगों को भ्रामित करके अपना उल्लू सीधा करते रहना। जो लोग भ्रम में रहते हैं वही समाज में दुराव पैदा करते हैं। अब कोई ये समझाये कि दो चार बड़े कॉरपोरेट घरानों की अताशीत वृद्धि से निचले स्तर का विकास कैसे प्रभावित होगा 
? ? लघु और मंझोले उद्योग जो घरों से या अपने मोहल्ले के पहुंच योग्य स्थानों से चलाए जा रहे जिनसे ना जाने कितने घरों के परिवार आबाद है। वो कैसे पनपेंगे ? ?
 एक छोटा आदमी जो मोहल्ले में आटा व मसाला चक्की के जरिये , चाकू छुरी तेज़ करवाने की छोटी सी दुकान के जरिये , बच्चों के लिए स्टेशनरी दुकान के जरिये ,  महिलाओं के लिए ब्यूटी पार्लर के जरिये , फोटोकॉपी की दुकान के जरिये, घरेलू छोटी जरूरतों के किराना दुकान के जरिये अपनी रोजी रोटी चला रहे उनके विकास में बड़े बड़े कॉरपोरेट घरानों के व्यापारी किस तरह योगदान देंगे ? ? 
           इस तरह के छोटे मंझोले व्यापार कुल रोजगार का  45% भाग की पूर्ति करते है। और साथ ही इनके उत्पाद निर्यात को भी लगभग 50% तक कवर करते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में इनके सहयोग की 90 % योगदान के महत्वपूर्ण भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता। रोजमर्रा की जरूरतों का लगभग 6000 से भी ज्यादा उत्पादों को ये आमजन तक पहुंचाते हैं। ये घरेलू व्यापार या उद्योग के उत्पाद,  बड़ी कंपनियों के प्रचार प्रसार और दूसरे तामझाम के खर्च का गणित बैठाने के बाद बहुत कम क़ीमत में उपलब्ध होते हैं। - 23.0 % अर्थव्यवस्था की गिरावट बड़े और सुव्यवस्थापित कॉरपोरेट घरानों के लिए कोई बहुत बड़ी बात नहीं पर इस गिरावट का अप्रत्यक्ष प्रभाव जो इन छोटेमंझोले व्यापारों पर पड़ रहा उससे लाखों करोड़ों परिवार प्रभावित हो रहे। भारतीय अर्थव्यवस्था का लगभग आधा से ज्यादा हिस्सा असंगठित व्यापार या उद्योगों से ही  चलता है। जिसमें थोड़ी सी पूंजी लगा कर कोई ज़मीनी स्तर का कोई काम धंधा लगा लेता है और परिवार की जरूरत भर का कमा कर घर चलाता है। उस की मंशा बड़े बड़े उद्योगपतियों की तरह  पूरे देश मे फैल जाने की नहीं होती ना ही वह अपने उत्पादों के प्रचार प्रसार में लाखों ख़र्च करता है। क्योंकि उसके ग्राहक उसके समीप ही रहते हैं। आज गली मोहल्लों का वह हर छोटा व्यापार ध्वस्त होने की कगार पर है जो एक पूरे परिवार का पेट भरने का साधन है। इन कॉरपोरेट घरानों के पेट तो सुरसा के मुख की तरह होते हैं।जो जितना मिले और पाने की चाह में और खुल जाते हैं। आख़िर इनके पेट मे भी तो रोटी की जगह 3 या 4 की ही होती होगी। पर एक छोटे व्यापारी की भी रोटी छीन कर खा जाने से क्या इन्हें अपच नहीं होता ? ? ?

Comments