अपनी पहचान अपने साथ

 अपनी पहचान अपने साथ.....!! ••••••••••••••••••••••••••••••


हम जीवित हैं । दुनिया देख रहे हैं। अपने इर्द गिर्द समाज से जुड़े है। और उस समाज देश को चलाने का जिम्मा राजनीति का होता है जिसे हम ही चुन कर उसकी जगह देते हैं। अब दूसरा पहलू भी देखा जाए कि हम जीवित हैं तो एक परिवार से जुड़े हैं उस परिवार का एक उपनाम भी हमें मिला है। ये चुनाव हमारा नहीं है। ये प्रदत्त है। अर्थात हम किसी समाज या देश का हिस्सा अपनी इच्छा से नहीं बने है। लेकिन हमें बनाने सवारने वाली राजनीति को हम ही बनाते हैं। 

फ़िर हम उसे ये मौका क्यूँ देते है कि वह हमारी निजी विशेषताओं को ले कर अपनी जगह मजबूत करें। हमारी खासियतें हमें खास इसलिए बनाती हैं क्योंकि उनसे हमारी पहचान निश्चित होती है लेकिन जब हम अपनी पहचान बनाये रखने का जिम्मा किसी और को दे देते हैं तब इसके साथ छेड़खानी होना अवश्यम्भावी है। इसलिए राजनीति के मोहरे मत बनिये। ये हमारी सामाजिक , पारिवारिक ,और आत्मिक विरासत को घुनकी तरह खा रही हैं। पहचान खत्म कर प्रयोग करना उसी तरह होता है जैसे कोई व्यंजन बनाना। किसी व्यंजन में अनेकों चीजें डाली जाती है। हर किसी का अपना महत्व होता है। पर पूरा पकने के बाद सब चीजें उसमें मिल कर समा जाती है। अलग अलग सबके स्वाद का आंकलन करना असम्भव है।और जब व्यंजन बन कर तैयार होता है तो तारीफ़ उसके पूरे स्वाद की होती है ना कि उस प्रत्येक वस्तु की जो उसमें डाला गया है। जिसने स्वाद बढ़ाने में मदद की है। इसी तरह हर नागरिक को उसकी पहचान खत्म करके प्रयोग करने के बाद ये राजनीति जीत का सेहरा अपने सर बांध लेती हैं । 

अलग पहचान और अपनी जगह बनाये रखना ज़रूरी है जिससे इस्तेमाल होने से बचा जाए।

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