Father's Day : विशेष

 फादर्स डे : विशेष                     ••••••••••••••••••

पिता को कंधा देते हुए पुत्र

जब छोड़ आता है अंतिम शरणस्थली

वह सिर्फ पिता को नही छोड़ आता तब

अपना आसमान छोड़ आता है वहाँ

जिसे छू सकता था  वह जब चाहे

जिससे तारे ले अपनी जेब भर सकता था

जिससे ऊष्मा ले ताप सकता था सर्द जीवन


पिता को जब छोड़ आता है पुत्र

अंतिम शरण स्थली

वह तब

एक घना वृक्ष आंगन से उखाड़ कर 

रख आता है वहां

जिसकी छांव में बैठता था अक्सर

फल लेता था जिससे मीठे, पके हुए,


वह स्कूल छोड़ आता है एक चलता हुआ

जो अपनी चोटों, घावों से

सिखाता है, समझाता है, 

गिरने से बचने के अपने अनुभव बताता है

वह गिरते ही हाथ देकर उठा लेता है

घाव भरने की अपनी ईजाद की गई मरहम लगाता है


पिता को जब छोड़ आता है पुत्र

अंतिम शरणस्थली

उसे लगता है

उसकी तमाम शरण अब

छत विहीन हो गयी हैं

जहां  सीधे सिर पर गिरती है बरसात औऱ धूप


पिता को जब छोड़ आता है पुत्र

अंतिम शरणस्थली

पिता की खुली आंख बंद हो जाती है

पुत्र की आंख खुलने लगती है

आंख में मगर तब धुंआ भरने लगता है

उसे उस वक्त सबके अधिक जरूरत होती है पिता की

और पिता सामने राख हो रहा होता है।

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