क्या हमें स्वयं से प्रेम है , परखें
क्या हमें स्वयं से प्रेम है...परखें !! ••••••••••••••••••••••••••••••••
जीवन का सबसे सुंदर भाव है स्वयं से प्रेम करना......... अपने आप से प्रेम करना हमारे जीवन में जादू की तरह काम करता है
ये अहम अकड़ या घमंड बिल्कुल नहीं बल्कि अपने प्रति अधिक सम्मान और शरीर व दिमाग की चमत्कारी शक्ति के प्रति आभार है।
★ स्वयं से प्रेम करने के मुख्य बिंदु ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जीवन होने का आनंद
मेरा सौंदर्य परिपूर्ण
शरीर व दिमाग की प्रक्रिया उत्तम
मेरी दुनिया सुंदर और संतुष्टिदायक
मैं सम्बन्धों के निर्वहन में क़ाबिल
अब ये परखने के लिए कि क्या हमें स्वयं से प्रेम है ? ?... एक स्थिति से गुजरिए। किसी ने हमें अपशब्द कह दिए , भला बुरा कुछ बोल दिया। हम तुरन्त ही उसकी बात की प्रतिक्रिया स्वरूप खुद का आँकलन करने लगे । या फिर वह जिसने हमें बुरा बोला उसे ख़ुद से छोटा बताने लगे।
हमारा इस तरह का रिएक्शन बताता है कि हमें स्वयं से बिल्कुल प्यार नहीं है। हम सिर्फ स्वयं को दूसरे के सामने डिफेंड कर रहे हैं। कि जैसा वो सोचते हैं वैसे हम नहीं। क्यों हमें अपनी अच्छाई का दूसरों से सर्टिफिकेट चाहिए। यही साबित करता है कि हम स्वयं से प्रेम नहीं करते।
स्वयं से प्रेम करने का सबसे पहला प्रमाण है स्वयं पर विश्वास, अपने प्रति सम्मान, अपने जीवन पर अभिमान। और यदि यही सब किसी दूसरे की कही से डगमगाने लगे तो यह खुद पर अविश्वास है। स्वयं से प्रेम करने का तातपर्य है कि किसी भी हाल में अपनी आलोचना नहीं करना और अपने अस्तित्व को परिस्थितियों पर निर्भर होकर नहीं बल्कि दृढ़ता से हर समय सहज स्वीकारना। ये समझना बहुत सरल है कि जब कोई प्रेम में होता है तो बहुत सी दूसरी चीजें बातें उसके लिए बेमानी हो जाती हैं। बस यही हूमें स्वयं के साथ करना है। इससे कुछ भी कहे , किये जाने का फ़र्क़ हमारे व्यक्तित्व पर नहीं पड़ेगा।
ख़ुद को नापसंद किये जाने के लिए हमारे मन में कई धारणाएं होती हैं ...
1. अधिक मोटा / अधिक पतला
2. अधिक लंबा/ अधिक नाटा
3. अधिक आलसी/ अधिक क्रियाशील
4. अधिक कमज़ोर
5.अधिक मूर्ख
6.अधिक गरीब
7.अधिक अयोग्य
8.अधिक तुच्छ
9.अधिक गंभीर
10.अधिक अवरुद्ध
सबसे पहले तो ये सोचना चाहिए कि जो शारिरिक गुण ईश्वर प्रदत्त हैं वह बदले नहीं जा सकते। लेकिन उनके प्रति अपनी सोच बदल कर उसे व्यवहार में शामिल करके अपना व्यक्तित्व बदला जा सकता है। इसके लिए सबसे बेहतरीन उपाय है। दर्पण के समक्ष खड़े होकर खुद की आंखों में आंख डालकर प्रतिदिन खुद से 20 से 25 बार ये कहना कि मैं खुद को पसन्द करता या करती हूं । दिन में जब भी आईने के सामने होए यही दोहराए।
ये भी सम्भव है कि ये दोहराते समय मन में नकारात्मक विचार सामने आने लगे कि जब मैं मोटा हूँ। चेहरा दाग धब्बे वाला है तो मैं खुद को कैसे पसन्द करूं ? ? लेकिन फ़िर भी स्वयं को ये विश्वास दिलाना है कि मैं जिस रूप में हूँ। ज़िज़ दशा में हूँ। उसी में रहते हुए मुझे खुद से असीम प्रेम हैं। यही मंत्र एक दिन तमाम शारीरिक कमियों के बाद भी व्यक्तित्व को इस कदर प्रभावशाली बना देगा कि स्व आकर्षण जन्म लेने लगेगा।
इसलिए ये प्रयोग अपनाइए और स्वाम से प्रेम करके अपने व्यक्तित्व को इतना ऊपर उठा दिया जाए फिर हमें कभी भी खुद पर ग्लानि ना महसूस होए।
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