भारतीय परंपराओं की अवहेलना
भारतीय परंपराओं की अवहेलना : ••••••••••••••••••••••••••
भारतीय सभ्यता ने अपनी बहुत सी ख़ासियतों के चलते अपनी एक खास जगह बनाई है। उसके rituals सिर्फ धर्मिक नहीं व्यग्यनिक महत्व भी रखते हैं। तभी उनकी महत्ता और बढ़ जाती है।
विवाह परपंरा जिसमें से एक अहम ritual है। जिसे पुरातन काल में वहुत छोटी छोटी तमाम आयोजन क्रियाओं से गूंथ कर बनाया गया था। हल्दी ,मेहंदी, कुलदेव पूजन आदि बहुत सी महत्वपूर्ण रीतियाँ हैं जिन्हें निभाते हुए जोड़े को जीवन साथ जीना है ये बताया जाता है।
पर आज ये विवाह सिर्फ भोंडापन का एक प्रदर्शन बन कर रह गया है।
पीठी, उबटन, सांझी गायन के परम्परागत रीति रिवाजों को दरकिनार कर के एकता कपूर के सीरियल की दिखावटी हुलड़बाज़ मेहंदी और हल्दी हमने क्यों ज़बरदस्ती पकड़ ली ?
तोरण द्वार पर, पाणिग्रहण संस्कार के समय शालीनता से किते जाने वाली रस्मों में युवक/युवतियों द्वारा हुल्लड़ को क्यों स्थान दिया जा रहा....??
बंदौली में कान फोड़ू "मुन्नी बदनाम.... छत पर सोया बहनोई.." की तरह अश्लीलता से भरे अभद्र गीत क्यों बज रहे है...? ?
हम सबको सनातन संस्कृति के अनुरूप होने वाले विवाह संस्कारों, रीति रिवाजों से इतनी एलर्जी क्यों हो गई है कि वो सब बकवास और बेबुनियाद लगने लगे है....? ?
पण्डित जी से फेरे जल्दी करवाने की जिद करने वाले लोग ही बैंड बाजे के आगे सड़क पर नाचने में ही घण्टों समय लगाते है।
आशीर्वाद समारोहों में बड़ी टीवी स्क्रीन पर अपने ही बेटे-बेटी के "प्री वेडिंग शूट" आगन्तुकों को क्यों दिखाए जा रहे हैं?
प्री वेडिंग शूट के नाम पर विवाह पूर्व की भोंडी अश्लील स्वतंत्रता दी जा रही है। उन फोटोज को सार्वजनिक प्रदर्शनी के रूप में लगाया जा रहा है।
स्टेज पर बड़े बुजुर्गों को भी कैमरामैन/ डांस टीचर ठुमके लगवा रहे है। महिलाएं भी संगीत सन्ध्या के नाम पर भोंडापन दिखा रही है ।और असभ्य हरकते कर रही।
भोज भी एक दिखावे के आयोजन बन कर रहा गया। उसमें आगंतुकों को सिर्फ़ खाने और जाने से मतलब रहता है। वर वधु को स्नेह और आशीष देने का महत्व खत्म सा हो गया।
और भी बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो भारतीय परम्पराओं को समाप्त करने के लिए आधुनिकता के नाम पर किया जा रहा।परिवार, समाज सब पतनशील हो गए है।
महिलाएं गीत भूल गई है, पुरुष परम्पराओं का तर्पण कर चुके है
क्या हमारे शास्त्रों, पौराणिक ग्रंथों में ऐसे विवाह समारोहों का वर्णन लिखा गया है ..?
हम वैचारिक/मानसिक रूप से धर्मभ्रष्ट हो गए हैं और हम इसे खुशी-खुशी स्वीकार कर रहे हैं। इसके परिणाम निरंतर खतरनाक हो रहे है, और आगे भी और खतरनाक होंगे...
बदलाव पुरानी अच्छी परम्पराओं को मार कर अच्छा नहीं होता। उनमें मूलभूत सामयिक सुधार करके अपनाया जाना चाहिए।
पाणिग्रहण जीवन का सबसे बड़ा संस्कार है।और इसमें भोंडापन अश्लीलता और आधुनिकता का तड़का लगा कर यदि उत्तेजक बनाया जा रहा तो ये उसकी मूल स्वरूप को ख़त्म करने की ही कवायद है।
★★★★★★★★★★★★★★
Comments
Post a Comment