ढोंगी बाबाओं के जाल

 ढोंगी बाबाओं का जाल : •••••••••••••••••••••••

आज कल कॉरपोरेट जगत में ऐसी ऐसी विधाएं चलन में आ गयी जिससे लोगों को अपना वर्तमान और भविष्य बदलने की आस हो गई। वो वह विधियां तो अपनाते हैं पर अपना व्यवहार क्षणिक रूप से ही बदल पाते हैं। लॉ ऑफ अट्रैक्शन, स्ट्रेस मैनेजमेंट, मेडिटेशन, अवेकनिंग ऑफ इनरसेल्फ, ये सब मध्यवर्गीय फुरसतियों के आधुनिक चोचले हैं।

दुनिया के बहुत से लोग अध्यात्म की दुनिया के लिए हवा हवाई बातों पर समय और पैसा ख़र्च कर रहे। भारत में तो अर्धविक्षिप्त बाबाओं को ही आध्यात्म का विशेषज्ञ मान लिया जाता है, जिन्हें क़ायदे से किसी पागलखाने में होना चाहिए। 

तनाव या दबाव या अवसाद को मैनेज करने की ज़रूरत क्यों है, ये सवाल अपने आप से क्यों नहीं करते कि मैनेजमेंट का कोर्स करने की क्या जरूरत है। क्या ये खोजना सबसे ज़रूरी नहीं है कि तनाव या अवसाद या दबाव के पैदा होने की परिस्थितियां क्या हैं ! लेकिन ये स्वयं नहीं करेंगे। क्योंकि ज्ञान देने के लिए हज़ारों अर्धविक्षिप्त बाबाओं की फ़ौज आपके सामने खड़ी रहती है, आज कल कॉस्मिक एनर्जी वाले अंग्रेज़ी बाबाओं की भी बड़ी डिमांड है। 

लॉ ऑफ अट्रैक्शन कॉरपोरेट जगत में बड़ा चर्चित कॉन्सेप्ट है, इस पर कितने ही वीडिओज़, किताबें और फिल्में हैं, ये अवधारणा कहती है कि आपके दुख या सुख के निर्माता आप खुद ही हैं, आप ने इन्हें आकर्षित किया है, ये कहती है कि देश का दलित अगर कल्पना करे, बल्कि इसे कल्पना में देखे कि समाज में उसके प्रति असमानता ख़त्म हो गई है, तो सच में समाज ऐसा हो जाएगा। यानि आपका विचार ही वस्तु में बदल जायेगा।  ये कोई नई बात नहीं है, दर्शन जगत में ये अवधारणा पहले भी रही है, हॉं अभी इसे जिस नए कलेवर में लपेट कर प्रस्तुत किया जा रहा है, ये ज़रूर नया है। 

ये सब शायद इस लिए हैं कि अपनी शिक्षा दीक्षा पर लाखों खर्च करके भी मनमाफिक काम ना मिलना , घर परिवार को भरसक संभालने की कोशिश में आत्मसम्मान की बलि चढ़ाना, सामाजिक व्यवस्था में अपनी अच्छी जगह ना बना पाना ...ऐसा बहुत कुछ अंदर उबलता है तो वह क्रोध बनता है। लेकिन ये क्रोध मनुष्य होने का ही सबूत है । बात यहीं तक होती तो कोई दिक़्क़त नहीं थी, लेकिन ये निराशा, क्रोध या हताशा कभी कभी अपने पैदा होने के कारणों की पड़ताल करने लगती है, फिर आप देख लेते हैं कि कोई भी लॉ ऑफ अट्रैक्शन इसका कारण नहीं है, बल्कि आपकी ऊर्जा से उत्पादित सम्पदा का बड़ा हिस्सा कोई और डकार गया है। फिर इस समझ से बग़ावत पैदा होती है, इंक़लाब के रास्ते बनने लगते हैं और इसी को रोकने के लिए योगियों, ढोंगियों और सॉफिस्टिकेटेड अंग्रेज़ीदां सूट वाले बाबाओं की ज़रूरत पड़ती है। 

ज्ञानेंद्रियों से परे भी कोई जगत हो सकता है, हो सकता है कल विज्ञान वहाँ तक पहुँच जाए, बल्कि धीरे धीरे नए रहस्य खुल ही रहे हैं, एक्सट्रा सेंसरी परसेप्शन की संभावना से भी इंकार नहीं, इस तरह अध्यात्म जगत में होने वाली बहुत सी चर्चाओं को खारिज़ भी नहीं किया जा रहा है, लेकिन जीवन और जीवन में उपजे दुख से मुक्ति के लिए इस जगत से मिलने वाला चूरन आपकी किसी समस्या का स्थायी इलाज नहीं है, बाकी पेन किलर भी थोड़ी राहत तो देते हैं, लेकिन इस राहत के लिए शरीर जो कीमत चुकाता है, उस पर भी ध्यान देना चाहिए। 

लॉ ऑफ अट्रैक्शन महज मन को संतुष्ट रखने की एक विधा है कि परिस्थितियां विपरीत हो तो क्या...हमें अपने मन को खुश रखना सीखना होगा। अब ये धारणा की पॉजिटिव सोचने से परिस्थितियां बदल जाएगी ये भी हमारी ही सोच पर निर्भर है। क्योंकि अगर हम विपरीत को भी accept कर रहे तो वह भी पॉजिटिव ही है नहीं accept कर रहे तो हमारे लिए negetive है। इस लिए बाबा या ढोंगियों की जरूरत नहीं । खुद की सोच से खुद को मजबूत बनाया जाए। 

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