उम्र,समय और कार्य का संतुलन ……………!

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क्या आप ने कभी पेड़ पर पके फल और दवाइयों के जरिये पकाये फल के स्वाद का अंतर महसूस किया है ? सही समय और सही वातावरण के सानिध्य में जो भी वस्तु पनपेगी उसका रूप अच्छा ही होगा। हर कार्य का एक निश्चित समय होता है उसके पहले या बाद में न तो वो उचित लगता है न ही जायज। उम्र का हर मोड़ एक नई पहचान के साथ आगे बढ़ता है जैसे बालकपन  में पढ़ाई  और बेफिक्री , जवानी में रोजगार और विवाह ,  प्रौढ़ावस्था में अपने परिवार को बढ़ता और फलता फूलता देखना  तथा वृद्धावस्था में उसी परिवार के सहारे जीवन के आखिरी दिन गुजार  लेना। 

    इन सारी  बातों से तात्पर्य ये है की आज कल समय से पहले ही सारे कार्यों को जानने और करने की जल्दी ने कितनी भयावह स्थिति उत्पन्न कर दी है जिसका खामियाजा ये समाज भुगत रहा है। बालक के मन और विचार बचपन से ही वयस्कों की तरह सोचने लगे हैं। वह वे सभी कार्यों को आजमाना चाहता है जो शायद बड़े हो कर करना उचित होता है। हालाँकि इसके कारण .........……. सामाजिक बदलाव , टेलीविज़न और  पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होना है। परन्तु इस बदलती सोच और समय से पहले ज्यादा से ज्यादा जी लेने की ख्वाहिश ने उनके व्यक्तित्व की आदर्शता को समाप्त कर दिया है। रोजाना ही समाचार पत्रों में छोटी बच्चियों को बलात्कार के शिकार होते देख कर तो ऐसा ही लग रहा है।  इस तकलीफ को शब्दों में बयां कर पाना असंभव है की उस बच्ची पर क्या गुजरती होगी ? उसे तो ये भी नहीं पता होता है की उस के साथ वास्तव में हो क्या रहा है। कोई अपना जिसे वह खेलने का साथी समझ रही हो वो ही खेल के बहाने उसे घायल कर जाता है। इस बात से ये बात निकलती है की आखिर ऐसा क्यों ? क्यों समय पूर्व एक बालक इन कार्यों  के बारे में  सोच कर उन्हें करने के लिए प्रयास करने लगता है। क्या ये माता  पिता का  फ़र्ज़ नहीं बनता की वो अपने  बालक के सोच और व्यव्हार पर ध्यान दें।  उसके बदलते रूप और तौर तरीकों को समझे और इस तरह के माहौल बनाएं की वो ऐसी घृणित सोच से बाहर  निकल सके ? हालाँकि बालक के लिए घर का माहौल अच्छा बनाया जा सकता है पर  संगी साथियों से उसे कैसे बचाया जाये जो आज कल इंटरनेट के ज़माने में समय से पहले ही सब कुछ जानने और करने की ख्वाहिश रखने लगे हैं । 
                                                           आज कल विद्यालयों में भी सेक्स एजुकेशन के नाम पर होने वाला वहियाद निर्णय भी इस के लिए जिम्मेदार है। समय और उम्र सब अपने आप सीखा देती है उसके लिए किताबी ज्ञान की आवश्यकता नहीं है ये सत्य क्यों नहीं समझ पा रहे सब ? आज से कई वर्षों पहले भी इस ज्ञान के बिना बच्चे बड़े होते थे, शादियां होती थी और उनके बच्चे पैदा होते  थे। तब तो बड़े बुजुर्ग समय आने पर समझा- बुझा कर स्थिति सम्भाल लिया करते  थे।  आज भी वही माहौल बनाने की जरूरत है।   हमारे बच्चे हम से ही सीखें दूसरे माध्यमों से नहीं क्योकि जो हम उन्हें सिखायेगें वही उनके लिए सही होगा। और इसी के साथ उन्हें वह ज्ञान उसी समय पर मिलेगा जब की उसकी आवश्यकता होगी। 

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