ए टी एम....पासवर्ड *//जान की कीमत //*..!
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एक सोच ने भयभीत कर के रखा है।  वह आप सभी के जीवन का भी हिस्सा होगी।  पर हो सकता है कि उससे सिर्फ माता पिता ही जूझ रहें हों। जबकि एक संतान उन्हें उसे लगातार जूझते हुए देखते भी अपनी ही दुनिया में मस्त है। वह है आज कल के बच्चों का बदलता रवैया। आखिर किस ओर हमारी ये पीढ़ी जा रही है ? मुझे याद आता है हमारा माता पिता के प्रति व्यव्हार का समय।  पिताजी के आते ही घर का महल एकदम शांत हो जाया करता था।  सभी संयम से अपने अपने कार्य में लग जाते थे।  माँ रसोई की जिमेदारी और हम सभी पढ़ने में व्यस्त हो जाते थे।  पिताजी रोज ही तरह अखबार या फिर टेलीविज़न पर समाचार सुनते हुए आराम फरमाने लगते थे।  माँ चाय और नाश्ते के साथ उनकी दिनचर्या और अपनी गृहस्थी के वृत्तान्त में उलझ जाती थीं। इन सब से परे हम सभी बच्चे अपनी अपनी किताबों में सर झुकाये खाना लगने का इन्तेजार करते कि कब पिताजी आवाज देकर हमें बुलाएँगे और हमें पुस्तकों से मुक्ति मिलेगी। कुछ ऐसा ही जीवन जिया हमने और निःसंदेह आप ने भी।  उस बंधन में नियम और नियम में जीवन की प्रगति छुपी थी। 
                                                                              आज देखिये , सब से पहले तो किसी भी बच्चे की कोई दिनचर्या नहीं है। आज कल के बच्चों की सुबह ही रात को दस बजे के बाद होती है। उस समय वह अपने पूरे फॉर्म में नज़र आते हैं। दोस्तों के साथ चैटिंग , नेट के  यूट्यूब पर वीडियो सर्चिंग , और लंबी गॉसिपिंग। यही उनका जीवन है।  जिसमें आगे किसी भी तरह की प्रगति के आसार नजर नहीं आते। माता पिता की टोका टाकी  का तो सवाल ही नहीं उठ सकता क्योंकि आज की युवा पीढ़ी को दखलंदाजी बिलकुल पसंद नहीं। वह अपनी जिंदगी के मजे अपने ढंग से लेने में विश्वास रखते हैं। हमारी जरूरतों का विवरण बस यही ख़त्म हो जाता है कि उनकी मौद्रिक पूर्ति निरंतर चलती रहे। आजकल माता पिता सिर्फ एक ए टी एम मशीन बन कर रह गए है। जिसका पासवर्ड है औलाद की जिंदगी की कीमत। इसी पासवर्ड को बार बार एंटर कर के वह हमें अपने इशारों पर नचाते हैं और हम उन्हें करीब रखने और देखते रहने की कीमत चूकाते रहते हैं। धन्य हैं ये औलादें और धन्य हैं हम जो  उनके जीवन की कीमत पर उन्हें बर्बाद करने में भरपूर सहयोग देते रहते हैं। 

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