कभी जो अपने थे ....... !!
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क्यों बेगाने से लगने लगे हैं
वो अपने , जो थे कभी।
हम ही ने बदल दिए क्या ,
वो सपने जो थे कभी।
क्या दर्द किसी और का ,
खुद से हमें जोड़ता है।
अब हमारे दिल का ही ,
जूनून हमें तोड़ता है।
सब बदला सा लगने लगा ,
फिर भी चाहत बाक़ी है।
मन की आग में जलते हुए ,
अपनी वफ़ा एकाकी है।
सम्बन्द्धों का अपनापन यूँ है ,
जुड़े हैं पर नापसंदगी भी है।
जानते बुझते हुए यह सब ,
मजबूरी की रजामंदी भी है।
अब तो अपने बन जाओ ,
फिर से एक बार स्नेही।
फिर से एक बार ले लो ,
प्रेम निभाने की जवाबदेही।
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क्यों बेगाने से लगने लगे हैं
वो अपने , जो थे कभी।
हम ही ने बदल दिए क्या ,
वो सपने जो थे कभी।
क्या दर्द किसी और का ,
खुद से हमें जोड़ता है।
अब हमारे दिल का ही ,
जूनून हमें तोड़ता है।
सब बदला सा लगने लगा ,
फिर भी चाहत बाक़ी है।
मन की आग में जलते हुए ,
अपनी वफ़ा एकाकी है।
सम्बन्द्धों का अपनापन यूँ है ,
जुड़े हैं पर नापसंदगी भी है।
जानते बुझते हुए यह सब ,
मजबूरी की रजामंदी भी है।
अब तो अपने बन जाओ ,
फिर से एक बार स्नेही।
फिर से एक बार ले लो ,
प्रेम निभाने की जवाबदेही।
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