औरत
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तुम ....!!
      
खुद को कम मत आँको ,
खुद पर गर्व किया करो।
क्योंकि तुम हो तो..
थाली में चुपड़ी गर्म रोटी है। 
ममता की शीतल ठंडक है,
और प्यार की गर्माहट  है। 
तुमसे घर मे पूजा की थाली हैं।
तुमसे संझा की दिया बाती है
घर घर की तरह लगता है।
तभी घर लौटने की इच्छा है
क्या खास बना है रसोई में
झांककर देखने की चाहत है। 
रिश्तों के अनुबंध बरकरार हैं,
पड़ोसी से भी संबंध शानदार हैं।
घर में सबकी घड़ी तुम हो , 
सोना जागना खाना सब तुमसे है।
तुम हो तो ही सब त्यौहार हैं ,
तुमसे ही उनकी रौनक जोरदार है।
तुम्हीं हो दीवाली का दीपक,
होली के सारे चटकीले रंग,
इंतजार में घर का खुला दरवाजा हो,
झिलमिलाती रोशनी की खिडक़ी हो।
ममता का आकाश तुम ही हो ,
समंदर भी हो तुम प्यार का ।

तुम क्या हो... 
पहले खुद को तो जानो !
फ़िर उन्हें भी बताओ ज़रा ,
जो तुम्हें नहीं जानते 

कहते हैं.. 
तुम करती क्या हो ,
या तुम हो कौन .....????
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