करना और अच्छे से करने का फ़र्क़...!!
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हम सभी इस जीवन से जुड़े सभी कार्य करते है। तभी ये दुनिया चलायमान है। जिंदगी चलाने के लिए हमें सभी कार्य अपने तरीके से या दूसरों की मर्ज़ी से करने ही होते है। अपने पेट की भूख मिटाने के लिए , अपनी आजीविका चलाने के लिए , अपने से जुड़े लोगों की जिम्मेदारी उठाने के लिए हमें काम करना पड़ता है। तभी जिंदगी चल पाती है। पुरुष बाहर का , स्त्री घर का और बच्चे पढ़ाई और रोजगार से संबंद्धित जद्दोजहद में व्यस्त हैं। तभी उन्हें आगे जीते रहने का रास्ता मिलता है। जन्म लेने के बाद यह आवश्यक है कि हम अपने कार्यों की कीमत समझें और उसे ईमानदारी से निभाएं।
अब शीर्षक के अनुसार काम की व्याख्या करते हैं। काम सभी कर रहें है। कम , ज़्यादा या बहुत ज़्यादा। उसी अनुसार उनको उसका परिणाम या रिटर्न भी मिलता है। पर क्या कभी हमने ये सोचा है कि करना और अच्छे से करने में क्या फ़र्क़ है ?? उदाहरण के तौर पर देखिए हर स्त्री अपना घर संभालती है पर किसी के घर मे घुसने पर घर की व्यवस्था देख कर मन विचलित होता है। जबकि दूसरी तरफ़ किसी स्त्री के घर मे घुसने पर यकायक मुहँ से उसकी व्यवस्था की तारीफ़ निकल जाती है। दफ्तर में भी किसी का केबिन एकदम चकाचक दूसरे का एक लिफ़ाफ़ा ढूंढने में भारी मशक्कत । यह सिर्फ रखने की व्यवस्था से ही जुड़ा मुद्दा नहीं है। मेरी बेटी कत्थक नृत्य करती है। मैं हमेशा उसे एक ही बात समझाती हूँ कि जब तक नृत्य मन से नहीं निकलेगा। वो कटीलापन और भाव नहीं उभरेंगे। सिर्फ हाथ पैर हिला देना नृत्य नहीं होता।
इस लिए काम करने में जब मन से इन्वॉल्व हुआ जाएगा । तभी वह काम निखर कर सामने आएगा। नहीं तो ऐरा गेरा परिणाम तो मिल ही सकता है। इस स्थिति के लिए हमारा मन जिम्मेदार है। इस लिए किसी भी काम को करते हुए थोड़ी सी ही देर पर रुचि जगाना जरूरी है। जिससे परिणाम में बेहतरी के प्रतिशत बढ़ जाये।
उदाहरण के लिए एक किस्सा और बताऊं । एक बार मैं अपने पति के लिए सफेद रंग का स्वेटर बुन रही थी। स्वेटर करीब पूरा होने की कगार पर था तब मैंने देखा कि मेरा एक बाल सफेद ऊंन के साथ ही बिन गया जिससे वह भाग काला काला सा लग रहा है। सबने बहुत कहा कि रहने दो दुबारा मेहनत करनी पड़ेगी । पर मैंने वह भाग पूरा उधेड़ दिया और पुनः एक हफ्ता लगा कर फिर से बिना। इसे मैं परफेक्शन कहती हूं। और शायद यही है काम को अच्छे से करना। वर्ना स्वेटर तो उस कमी के साथ भी लगभग बन ही गया था।
कोई भी काम करते समय हमें यही बात ध्यान रखनी चाहिए कि हम उसे करते हुए और बेहतर कैसे बना सकते है ? क्योंकि तारीफ तो हमेश बेहतर की ही होती है।
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हम सभी इस जीवन से जुड़े सभी कार्य करते है। तभी ये दुनिया चलायमान है। जिंदगी चलाने के लिए हमें सभी कार्य अपने तरीके से या दूसरों की मर्ज़ी से करने ही होते है। अपने पेट की भूख मिटाने के लिए , अपनी आजीविका चलाने के लिए , अपने से जुड़े लोगों की जिम्मेदारी उठाने के लिए हमें काम करना पड़ता है। तभी जिंदगी चल पाती है। पुरुष बाहर का , स्त्री घर का और बच्चे पढ़ाई और रोजगार से संबंद्धित जद्दोजहद में व्यस्त हैं। तभी उन्हें आगे जीते रहने का रास्ता मिलता है। जन्म लेने के बाद यह आवश्यक है कि हम अपने कार्यों की कीमत समझें और उसे ईमानदारी से निभाएं।
अब शीर्षक के अनुसार काम की व्याख्या करते हैं। काम सभी कर रहें है। कम , ज़्यादा या बहुत ज़्यादा। उसी अनुसार उनको उसका परिणाम या रिटर्न भी मिलता है। पर क्या कभी हमने ये सोचा है कि करना और अच्छे से करने में क्या फ़र्क़ है ?? उदाहरण के तौर पर देखिए हर स्त्री अपना घर संभालती है पर किसी के घर मे घुसने पर घर की व्यवस्था देख कर मन विचलित होता है। जबकि दूसरी तरफ़ किसी स्त्री के घर मे घुसने पर यकायक मुहँ से उसकी व्यवस्था की तारीफ़ निकल जाती है। दफ्तर में भी किसी का केबिन एकदम चकाचक दूसरे का एक लिफ़ाफ़ा ढूंढने में भारी मशक्कत । यह सिर्फ रखने की व्यवस्था से ही जुड़ा मुद्दा नहीं है। मेरी बेटी कत्थक नृत्य करती है। मैं हमेशा उसे एक ही बात समझाती हूँ कि जब तक नृत्य मन से नहीं निकलेगा। वो कटीलापन और भाव नहीं उभरेंगे। सिर्फ हाथ पैर हिला देना नृत्य नहीं होता।
इस लिए काम करने में जब मन से इन्वॉल्व हुआ जाएगा । तभी वह काम निखर कर सामने आएगा। नहीं तो ऐरा गेरा परिणाम तो मिल ही सकता है। इस स्थिति के लिए हमारा मन जिम्मेदार है। इस लिए किसी भी काम को करते हुए थोड़ी सी ही देर पर रुचि जगाना जरूरी है। जिससे परिणाम में बेहतरी के प्रतिशत बढ़ जाये।
उदाहरण के लिए एक किस्सा और बताऊं । एक बार मैं अपने पति के लिए सफेद रंग का स्वेटर बुन रही थी। स्वेटर करीब पूरा होने की कगार पर था तब मैंने देखा कि मेरा एक बाल सफेद ऊंन के साथ ही बिन गया जिससे वह भाग काला काला सा लग रहा है। सबने बहुत कहा कि रहने दो दुबारा मेहनत करनी पड़ेगी । पर मैंने वह भाग पूरा उधेड़ दिया और पुनः एक हफ्ता लगा कर फिर से बिना। इसे मैं परफेक्शन कहती हूं। और शायद यही है काम को अच्छे से करना। वर्ना स्वेटर तो उस कमी के साथ भी लगभग बन ही गया था।
कोई भी काम करते समय हमें यही बात ध्यान रखनी चाहिए कि हम उसे करते हुए और बेहतर कैसे बना सकते है ? क्योंकि तारीफ तो हमेश बेहतर की ही होती है।
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