बेटा ..ऊप्स , (? ? ) की पैदाइश का जश्न ....! !

2012 , 16 दिसंबर ....वो काली रात जो आज भी अपने फैसले के लिए कानूनी रास्तों पर भटक रही है। सात साल...लंबे सात साल उन सभी के लिए जिन्होंने निर्भया की घटना के दर्द को करीब से देखा या फिर दूर रहकर ही महसूस किया । शर्म है ..! घोर शर्म है ऐसे दरिंदे समाज की छांव में सुरक्षा और सुकून की तलाश करने की जद्दोजहद करने के लिए।  क्योंकि सात साल बाद भी दरिंदे जिंदा हैं और दया की उम्मीद लगाए हुए हैं।  सात साल तक उस मासूम की माँ के थाने कचहरी में बीत गए।
                     "सही है औरत सिर्फ एक इस्तेमाल की ही चीज़ है "। घर पर बीवी, माँ बन कर और सड़क पर अपनी मिल्कियत समझ कर । आखिर उसके पास वो पूंजी है जिसे लूटने के लिए ही विधाता ने पुरुषों को गढ़ा है।  वर्ना एक बार सोचिए कि अगर पुरुष के संग के बिना विधाता ने औरत को एक नया जन्म देने के कला औरत को दे दी होती तो शायद पुरुष इस सृष्टि में ही नहीं आते।
      शर्म करने की ये भी एक वजह है कि औरत को लूटते और जलील करते लोग खुद के पैदाइश होने की वजह को भूल जाते है। घर से बाहर की हर औरत उनके लिए सिर्फ इस्तेमाल की चीज़ है। और वो भी किसी हद तक बर्बर होकर । हैदराबाद ,उन्नाव , यू पी के फतेहपुर जैसे कितने की केस है जिसमें आदमी ने अपनी औक़ात , सोच ,परवरिश और घृणित कर्म से अपने हिस्से में  सिर्फ शर्मिंदगी ही लिखी है। 
     बेटे पैदा होने पर कृपया अब जश्न न मनाए क्योंकि आपने कोई गर्व का काम नहीं किया एक और बलात्कारी पैदा करके । एक बेटा ,एक बेटी को तबाह करने के लिए काफी है।  शर्म करें अब बेटे वाले । क्योंकि  सिर्फ़ मौका और समय मिलने की जरूरत है ,....हो सकता है कि आपके बेटे का भी पुरुषत्व जागृत हो जाये और फिर एक औरत अबला बन जाये।
                                         हाँ बेटी के पैदा होने का दर्द अब भी सबको समझने की जरूरत है।                    

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