काश अपना भी हो चाय का नुक्कड़ ...💃☕

काश अपना भी हो चाय का नुक्कड़ ...!!
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कभी-कभी नहीं ,
अक्सर ही मेरे दिल में 
ये खयाल आता है...
कि शहर के हर चौराहे पर,
हर एक नुक्कड़ पर....
चाय की एक गुमटी
हम औरतों की भी हो ।
जहाँ खड़ी हो कर ,
कभी अकेले तो कभी अपने दोस्तों के संग
बीच बाज़ार, भरे चौराहे, ठहाके लगा सकें 
साझा कर पाएं ।
अपने घुमक्कड़ी के किस्से
नौकरी की परेशानियां
नज़रंदाज़ कर दी गयी फब्तियां
देश की इकॉनमी पर अपने विचार
वायरल हुए जोक और मीम्स 
और वो सब कुछ 
जो उनके मन की चारदीवारी में
खरबों युगों से ज़ब्त है

बस एक एक धौल में सारी मायूसी 
लापता सी हो जाये ।
चाय की चुस्कियों के मिठास में
गुम हो जाये...!
बेटी के इंजीनियरिंग एंट्रेंस की चिंता
नौकरीपेशा बेटे के लिए
अपनी जैसी हूबहू बहु लाने का सपना
भुला कर अल्हड़पन में जियें ।

बंद हो जाये कुछ पल के लिए 
इतनी देर कैसे हो गयी,
इतनी देर कहाँ रह गयी
घर का कुछ ध्यान है या नहीं
जैसे अनगिनत सवालों का गूंजना

और सबसे बड़ा सवाल
कि ''आज खाने में क्या पकेगा?''
की पकाहट से कुछ पल के लिए सही
मिल जाये मुक्ति

औरतें अपने सारे फ़िक्र, 
सारी परेशानियां
पास पड़े कूड़े के डब्बे में फेंक दें
और मुस्कुराते हुए कहें...
चल यार! कल मिलते हैं
इसी समय 
अपने इसी चाय के नुक्कड़ पर 
काश......!!
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