आख़िर कब तक ....!!
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शायद अब ये सब कुछ सुनने सहने और देखने की इतनी आदत सी पड़ गयी है। कि ना तो रोंगटे खड़े होते हैं ना ही  दुःख महसूस होता है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि कब एक बच्ची किस वजह से अपनी जान से हाथ धो दे रही है। एक सौ पैंतीस करोड़ की आबादी में अगर हज़ार लाख बच्चियाँ मर भी जाएं तो कौन सी किसी की सरकार गिर जायेगी। सरकारें बनाने के लिए दूसरे बहुत से महत्वपूर्ण मुद्दें हैं। औरतें और बच्चियाँ किसी भी सरकार की ना तो प्राथमिकता रही हैं , ना ही कभी होंगीं।
                हरियाणा के जींद जिले के जुलाना गावँ में एक 12वीं में पढ़ने वाली छात्रा को दो लड़कों  ने अगवा किया। और एक सुनसान जगह ले गए जहाँ उनके चार पांच दोस्त और मौजूद थे। सब ने मिलकर उस बच्ची के साथ विभत्स बलात्कार किया। फ़िर सबूत मिटाने के तौर पर उसे तालाब में डुबों कर मारने की साजिश की। उसके परिजन उसे ढूंढ़ते हुए आ गए जिससे वह बच्ची बच तो गई पर उसका जीना अब पहले जैसा नहीं रहा क्योंकि इतने लोगों के बलात्कार के बाद उसका शरीर बेकार हो गया। दर्द और घाव उसे टीस रहे हैं। 
          इसी तरह की एक दूसरी घटना जिसमें  बिहार के जहानाबाद इलाके में एक नाबालिग बच्ची को चार लड़कों ने घेर कर छेड़छाड़ शुरू की। वह चीखती चिल्लाती रही। कोई बचाने नहीं आया। उन्होंने उसके सारे कपड़े फाड़ दिए। उसे सड़क पर ही ज़लील किया। वह लाचार बेबस अपनी इज्जत बचाने की कोशिश करती रही। पर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा। उल्टा उनके साथियों में से एक उस घटना का वीडियो बनाता रहा। ताकि उस बच्ची को आगे भी ब्लैकमेल किया जा सके।
              शर्म है ऐसे समाज पर और थू है ऐसी आदमियत पर। घृणा होती है , जब कोई बेटा पैदा होने की बधाई लेता है। उसे शर्म से डूब मरना चाहिए कि उसने एक समाज मे एक बलात्कारी और बढ़ा दिया। कल वो भी किसी दूसरे की बेटी बहु को देख कर उनको नंगा करने के सपने देखेगा। आखिर हम क्यों नहीं अपने बेटों को वो संस्कार दे पा रहे? ? तबका चाहे छोटा हो या बड़ा बेटे को सही दिशा दिखाना हर अभिभावक का फर्ज हैं। तभी ये घृणित कांड रुकेगा, थमेगा और संभलेगा ।

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