पेट की सीमा का आंकलन 😞
पेट की सीमा का आंकलन ...😞
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आजकल सब लोग कृषि बिल , उस पर सरकार का रवैया , पूंजीपतियों का घिरता शिकंजा और बदहाल होते आम आदमी की ही बातें कर रहे हैं। ये बदहाली निसन्देह राजनीतिक अव्यवस्थाओं की वजह से आ रही । शायद इसीलिए अब राजनीति सिर्फ़ बहस करने का मुद्दा बन गयी है। जिसे आम जिंदगी में शामिल करके सिर्फ तनाव और दुःख ही हाँसिल होगा। पर इन संदर्भों में जो सबसे ज्यादा खटकने वाली बात नज़र आ रही ........."वह है इंसान की बढ़ती भूख .......!!"
एक बात जो ईश्वर की तरफ से अक्षरशः सत्य बन कर आई है। वह है इंसान की पेट की सीमा......। जब खुल के भूख लगी हो तब भी इंसान अपने पेट की सीमा में ही कुछ खा सकता है । चाहे वह काजू की ही रोटी क्यों नहीं खाये। हम अपने खाने का स्तर तो बदल सकते हैं पर उसकी मात्रा नहीं। अर्थात आप मूँगफली की जगह बादाम या रोटी की जगह पिज़्ज़ा तो खा सकते हैं। पर पेट फटने की कगार पर पहुंच कर रुकना तो लाज़मी हो जाता है।
बस इतनी सी बात एक इंसान होने के लिए समझना जरूरी है पर आजकल ज़्यादातर आदमी या तो नेता बन चुकें है या उद्योगपति या भक्त ..... !! क्योंकि शायद आम आदमी तो अपनी आर्थिक- पारिवारिक स्थिति समझ कर कुछ हद तक पेट और शरीर दोनों की सीमा समझ रहा है । पर ये तीनों श्रेणियां इस समझ से अनजान हैं। बड़े उद्योगपति जो कि तकरीबन हर क्षेत्र में अपना पैर पसार चुके हैं । अपनी आदी औलादों के लिए भी अच्छी खासी रकम जोड़ चुके क्या वो भी अपने पेट की सीमा से अनजान है....? ? एक नेता जो जनता को नोंच नोच कर अपना घर भर रहा अपने भविष्य सुरक्षित करने के लिए दूसरे देशों में बसने का प्रयोजन बना रहा क्या उसे भी अपने पेट की सीमा का अंदाज़ा नहीं... ? ? एक भक्त जो सिर्फ़ अपने जाति , धर्म और संप्रदाय को लेकर ख़ुश है क्या उसका धर्म जाति भी उसे पेट की सीमा से अधिक खाने की इजाजत देती है .....? ? ये भी सत्य है कि चोरी ,कालाबाज़ारी , रिश्वत सभी पेट की भूख से जुड़े हैं । आख़िर इंसान , धन जीने के लिए चाहता है। पर क्या वो जीते रहने के लिए पेट की सीमा से ज्यादा खा सकता है ? ? ज़्यादा या बेहतरीन खा कर क्या वह अपनी उम्र बढ़ा सकेगा ......? ? और फ़िर चलो ये भी मान लो कि आगे की जिंदगी के लिए भी तो जोड़ना होता है तो क्या ये पता है कि हमें ईश्वर ने कितने दिन की जिंदगी दी है ? ? तभी तो एक प्रचलित मुहावरा है कि "कल का पता नहीं और हम अचार साल भर का डाल लेते हैं " इसलिए अब अगर ख़ुद के अंदर थोड़ी सी भी इंसानियत को जिंदा रखना है तो सबसे पहले अपने पेट की लिमिट को समझना होगा। जो शायद थोड़ी बहुत उम्र से भी जुड़ी है। ये भी सत्य है कि बिस्तर चाहे मख़मल का हो नींद नहीं ला सकता।
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