परिस्थितियों को हड़बड़ी में समझने की व्यर्थ कोशिश

 परिस्थितियों को हड़बड़ी में समझने की व्यर्थ कोशिश .....!!  ••••••••••••••••••••••••••

सामान्यतः हम परिस्थितियों को स्वीकार करने में इतनी हड़बड़ी कर देते हैं कि उनका मूल स्वरूप या सुधरा हुआ स्वरूप देख ही नहीं पाते। इसे एक उदाहरण से समझा जाये

                           अमूमन सड़क पर ट्रैफिक जाम नहीं है जो हमें परेशान करता है, लेकिन ट्रैफिक जाम के कारण होने वाली गड़बड़ी को संभालने में हमारी अक्षमता हमें परेशान करती है।

समझने और सोचने वाली बात यह है कि समस्या से अधिक, समस्या के प्रति हमारी प्रतिक्रिया ही हमारे जीवन में असंतुलन पैदा करती है। इसलिए ये समझना जरूरी है कि जिंदगी में हमेशा रिएक्ट नहीं करना चाहिए। परिस्थितियों को समझने की कोशिश करनी चाहिए।

एकदम से प्रतिक्रिया कर देने से परिस्थिति की विकटता और जटिल हो जाती है , परिस्थिति को समझकर और उसके अनुसार व्यवहार से उसे सुलझाया जा सकता है। 

बिना सोचे समझे दी गई प्रतिक्रियाएँ हमेशा आवेग में आकर या बिना सोचे समझे दी जाती हैं, जबकि आराम से दी गई प्रतिक्रियाएँ हमेशा अच्छी तरह से सोच समझ कर के दी जाती हैं।

समझने का एक सुंदर तरीका ये है कि............!!

जो व्यक्ति खुश है वह इसलिए नहीं है क्योंकि उसके जीवन में सब कुछ सही है । वह खुश है क्योंकि जीवन को और उसमें समाई तमाम स्थितियों परिस्थितियों को देखन का उसका नजरिया सही है..!

मन को ऐसी स्थिरता के लिए तैयार करना है कि जीवन में सबसे भयावह परिस्थितियों में भी, हम अपने  जीवन में एक ठहराव ला सकते हैं, स्थिति का विश्लेषण कर उसे समझकर उससे पार पाया जा सकता है। वरना सिर्फ उलझाव के कुछ हाँसिल नहीं होता।

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