अंतर्मन या कॉमन सेंस की आवाज़
अंतर्मन या कॉमन सेंस की आवाज़: •••••••••••••••••••••••••••••••••••
इस पोस्ट की शुरुआत एक घटना से करती हूं, विस्तृत विवरण इसके बाद प्रस्तुत करूंगी जिससे लिखे का मर्म अच्छी तरह समझ आ सके..............!!
एक बार एक ऋषि गुरुवर को सूचना मिली कि उनका एक शिष्य काफी घायल हो गया है। वो उसको देखने पहुंचे और पूरा घटनाक्रम जानना चाहा। शिष्य ने बताया कि उसे बाज़ार में एक हाथी ने चोट पहुंचाई और घायल कर दिया।
गुरु ने पूछा- यह सब कैसे हुआ ? ?
शिष्य ने बताया कि वो बाज़ार में था और सामने से उसे एक मदमस्त हाथी अपनी तरफ आते दिखा। वो बाज़ार में पहले ही काफी उपद्रव मचा चुका था।
गुरु बोले- तो तुमने क्या किया ? ?
शिष्य बोला - मैंने आपका स्मरण किया और आपकी ये बात भी पुनःस्मरण की कि संसार में सब ईश्वर की ही मर्ज़ी से होता है और सब कुछ ईश्वर ही करता है, तो फिर इस हाथी से मेरी रक्षा भी ईश्वर ही करेगा।
गुरु ने पुनः पूछा - फिर क्या हुआ ? ईश्वर ने तुम्हारी रक्षा की क्या ?
शिष्य ने उत्तर दिया - नहीं गुरुदेव, मैं हाथ जोड़े ईश्वर से प्रार्थना करता रहा पर वो हाथी मुझे कुचलते हुए निकल गया।
शिष्य ने पुनः पूछा कि ईश्वर ने मेरी रक्षा क्यों नहीं की स्वामी जबकि मेरी तो उसमें पूरी आस्था थी?
अब गुरु ने कहा - अच्छा एक बात बताओ, जब वो हाथी तुम्हारी ओर दौड़ा चला आ रहा था तो तुम प्रार्थना कर रहे थे और ईश्वर को याद कर रहा था ये तो तुमने बता दिया। पर इसके अलावा तुम्हारे अंतर्मन में क्या कुछ निरंतर नहीं चल रहा था ? ?
शिष्य ने कहा - जी गुरुदेव, मेरे अंतर्मन से ये आवाज़ बार बार आ रही थी कि हट जा इस हाथी के रास्ते से और कर ले अपनी रक्षा....
गुरुदेव बोले- पागल, वो जो तुम्हारे अंतर्मन से आवाज़ आ रही थी और आती ही जा रही थी वही ईश्वर के रूप में अंतर्मन की आवाज़ थी। उसे तूने सुना नहीं, बस एक सीख को दोहराता रहा। वो आवाज़ ही ईश्वर थी जो तूझको बचाने आयी थी।
गुरुदेव जिस आवाज़ की बात कर रहे थे और जिसे खुद ईश्वर ही बता रहे थे, उसे ही हम आज की भाषा में "कॉमन सेंस" कहते हैं।
अंधी आस्था सही कर्म से विमुख करती है, जबकि कॉमन सेंस आपको आंख खोल कर जीना सिखाती है और सही समय पर सही कर्म करने की दिशा देती है और ये कॉमन सेंस अपने नाम के विपरीत बिल्कुल ही विलक्षण भाव है। ये कोई साधारण चीज़ नहीं है। ये मानव जाति की संघर्ष यात्रा से, उसके संचित अनुभवों से विकसित हुई है। और मानव इस विरासत को लेकर ही पैदा होता है। यही कॉमन सेंस आपको पूरी ज़िंदगी गाइड करती है। इसे गहरे में सब पता होता है कि क्या करने से दुख आता है और क्या करने से सुख। इसीलिए ये अस्तित्व की सबसे अद्भुत सौगात है।
पर हम अक्सर इसकी नहीं सुनते, कहते हैं ना कि एक झूठ बार बार बोला जाए तो वह सच हो जाता है। पर उस झूठ को भी पहली बार तो सुनने पर अंतर्मन या कॉमन सेंस ने जरूर आगाह किया होगा। जब हमने उसे अनदेखा करके दरकनार किया तभी वह हर बार सच बनने के लिए हमारे सामने आता रहता है।
कॉमन सेंस मूल आधार है, स्रोत है, जिससे धर्म की समझ भी हानि लाभ के साथ आती है। चाहे कोई भी शास्त्र पढ़ लो उसमें वर्णित बातें भी अंतर्मन के अनुभवों के आधार पर आंख, कान खोल कर स्वीकार करने की सलाह देती हैं। गीता में भी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने अंतर्मन की आवाज़ से कर्म और असत्य में से किसी एक को चुनने की सीख दी। इसलिए कॉमन सेंस की सुनी जाए तो बहकावे के जाल में फंसने से बचा जा सकता है।
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