इतनी भी क्या धर्मांधता
इतनी भी क्या धर्मांधता ? ? ? ••••••••••••••••••••••••••••
अच्छा सुनो......!!
मेरे घर और आस-पड़ोस में जब,
मंदिर-मस्जिद के चंदे की
रसीद काटने आये थे,
तुम तथाकथित धर्म समर्थक लोग ।
तब तुम्हारे
आजु-बाजू में ही अभावों में
तर रहे थे.....कुछ लोग,
जब तुमने इन पर कभी
ध्यान नहीं दिया ।
तो फ़िर क्यों?
मंदिर मस्जिद कमेटी में
अतिरिक्त फंड इकट्ठा होने के
बावजूद रसीद काट रहे थे,
उनके घर-घर जाकर क्यों तुमने
यह जानने की कभी कोशिश नही की,
कि मस्ज़िद के अलावा,
एक डिस्पेन्सरी, एक लाइब्रेरी,
के लिये भी तो चंदा करना चाहिए था तुम्हें !!
आने वाली नस्लों के लिये
कभी कोई ध्यान ही नही धरा ...!!
जाना चाहिए था जब तुम्हें,
विधायक, सांसद और कलेक्टर से मिलने ।
इन सभी समस्याओं के संदर्भ में
ज़िम्मेदारी से बात करने के लिये ।
तब तो तुममें से कोई भी
आगे आकर
समय ही ना निकाल पाया,
क्योंकि तब तो तुम सब के सब ही
अत्यधिक व्यस्त रहे अपनी ही व्यस्तताओं में
और मस्त रहे अपनी आत्ममुग्धताओं मे
उलझते रहे, लड़ते रहे, उड़ाते रहे दावतें ।
मंदिर मस्जिद की चौखटें
नित दिन-रात साफ करते-करते,
तुम आदर्श तो हो चले थे मोहल्ले भर में,
पर पूरे मोहल्ले भर में तो गन्दगी-पसरी थी,
और पसरी ही रहेगी....क्योंकि
मंदिर मस्जिद तो बुलंद तामीर हो गयी,
परंतु एक स्कूल, एक लाइब्रेरी, एक अस्पताल
बरसो तक अटके रहे,
तुम्हारे अपने ही मोहल्ले में ।
धार्मिकता की ये तो हद है कि
भंडारे, कीर्तन, दावाह, नियाज़ के वास्ते
तो तुरंत के तुरंत
नया चंदा इकट्ठा करने को उत्सुक रहते हैं
परन्तु!
डिस्पेंसरी की दवाइयां कहाँ चली जाती है?
हर रोज !
सड़कों के गड्ढों से कैसे किसी ना किसी का
हाथ-पैर टूट जाता है...?
हर रोज़ !
कभी इन पर कोई भी
ध्यान दिया....नहीं !!
हे! मेरे मोहल्ले के
आदर्श ज़िम्मेदार नागरिको
बने रहो धार्मिक
क्योंकि इसी धर्मांधता से ही
तुम्हारे बच्चोंका भविष्य उज्ज्वल होगा
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