धर्म की परिभाषा
धर्म की परिभाषा : ••••••••••••••••••
धर्म आपके लिए क्या है ये आप का मसला है पर धर्म मेरे लिए सिर्फ़ एक अटूट विश्वास है जो सदैव अच्छा करने, अच्छा होने, अच्छा देखने, अच्छा दिखाने और अच्छा बनाने में सहायक है। मेरा धर्म विध्वंस और अराजकता से कोसो दूर है और सबसे बड़ी बात कि मेरा धर्म अपनी ऊँचाइयाँ हाँसिल करने के लिए किसी दूसरे धर्म को नीचे गिराने में यकीं नहीं रखता। क्योंकि जिस जगह मेरा धर्म स्थापित है वह नितांत उसकी ही जगह है। जैसे जो जिस कुल में जन्म लेता है वह कुल उसकी पहचान बन जाता है। उसी तरह मेरे धर्म ने पुरातन काल से अपनी एक मुस्तक़िल जगह बना कर रखी है । एक कक्षा में दासियों विद्यार्थी होते हैं। जबकि अपनी जगह निश्चित होती है। किसी एक विद्यार्थी के होने से दूसरे की शिक्षा या उपस्थिति पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। उसी तरह मेरा धर्म भी तमाम धर्मों के होते हुए भी मेरे लिए गरिमामय इस लिए है क्योंकि उसमें दूसरे के साथ लड़ कट कर नहीं, समन्वय बना कर चलने की ख़ासियत है।
मेरे धर्म की दूसरी सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि मेरा धर्म छोटी छोटी बातों पर आहत नहीं होता। शायद इस का कारण ये होगा कि मेरे धर्म का अस्तित्व कागज़ या मिट्टी की मूर्तियों से ज्यादा मेरे मन में गढ़ा हुआ है। हम सभी ने अपने अराध्य की छवि अपने मन में बना कर रखी है। हम जब भी कभी उन्हें याद करते है वह उसी रूप में हमारे मन में आकर खड़े हो जाते हैं। ये छवियां हमारे बचपन में ही हमारे बड़े बूढों ने कहानियों किस्से के रूप में हमारी कल्पनाओं में गहरे बिठा दी है। जैसे राम जी धनुष बाण लिए, कान्हा मुरली मोरपंख के साथ, भोलेनाथ जटाधारी गंगा नंदी मूषक के साथ आदि आदि। ऐसे में अगर कोई दूसरा नासमझी या भावनावश हमारे आराध्य की छवि बिगाड़ता भी है तो उससे मेरे मन की छवि को क्या हानि...वो तो पहले की तरह मनमोहक और अप्रतिम है। मेरी सोच के अनुसार धर्म व्यापकता का नाम है और संकुचित सोच और धारणाएं इसे कमज़ोर कर रही है। व्यापकता अर्थात वह खुली बाहें जिसमें समयानुसार अच्छे बुरे, ऊंच नीच या पक्ष विपक्ष दोनों को स्वीकार करने की ताकत है। इसलिए अपने धर्म को चलिए ऐसा बनाये ना कि जरा जरा सी बातों पर आहत होने वाला भाव भर बना कर रख दिया जाए।
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