बलात्कार जिस्म का, रूह का या जमीर का

 बलात्कार जिस्म का, रूह का या ज़मीर का....!!        •••••••••••••••••••••••••••••

महिला और उसकी 6 साल की बेटी के साथ 4 लोगों ने बलात्कार किया।

★ शायद दोनों ने शराब पी रखी होगी......

★ शायद दोनों ने कपड़े  ठीक से नहीं पहने होंगे,  जो 4 लोगों की कामवासना उकस गयी होगी....

★ शायद दोनों को मोबाइल ने बिगाड़ दिया होगा.....

★ शायद  दोनों सभ्यता और संस्कृति को धता बताने वाला आचरण कर रही होंगीं।

हाइकोर्ट ने एक नोट भी दे दिया है....... रेप की शिकार अगर असहाय होकर रेप से बचने के लिए फाइट नही करती तो इसका मतलब यह नहीं कि उसकी सहमति है.....!!

स्त्री पूजक देश, देवी तुल्य मानी जाने वाली , विश्वगुरु राह पर चल रहा देश में स्त्री की ये दशा कुछ और ही सिद्ध करती है।

एक ही खबर को दो नजरिये से पढ़ें-

- woman and her 6 year daughter gangraped by 4.

- 4 men gangraped woman and her 6 year daughter.

न्यूज एडिटर्स को भी संज्ञान लेना होगा कि भाषा का बहुत फर्क पड़ता है......!!

दूसरा महत्वपूर्ण पॉइंट ये है कि सजा से अपराध नहीं रुकते।

कानून या सजा से अपराध रुकते तो आज जो इतने अपराध हो रहे हैं उनका अस्तित्व ही न होता। आज से कई साल पहले अपराधों की सजायें रूह सर्द कर देने जितनी भयंकर थीं, मसलन हाथ काट देना, भूखे शेर के आगे डाल देना, चूहों के बाड़े नें नग्न करके छोड़ देना,  शरीर को बीच से चीर देना, शरीर को कीलों से जड़कर टांग देना, आग में जिंदा भूनना...लेकिन अपराध कम नहीं हुए...बल्कि नित नए स्वरूपों के साथ और ज्यादा विकसित होते गए।

अपराध कम होते हैं परवरिश में बदलाव से। लेकिन हम निरंतर एक ढोंगवादी समाज के समाज के रूप में विकसित हुए हैं, हमने नैतिकता के उच्च स्तर बनाये, धर्म के उन्नत आदर्श गढ़े, आचरण के आदर्शवादी मानक स्थापित किये... लेकिन मानवीयता फिर भी विकृत होती गई... क्यों?

क्योंकि हम कर्म से ज्यादा धर्म में उलझ रहे हैं। हमें अपना जीवन उन्नत करने का तरीका कर्म नहीं लगता बल्कि हम धर्म को उसका जरिया मान बैठे हैं जो हमें और संकुचित बना रहा है। 

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