नो किचन ट्रेंड...स्वास्थ्य की अनदेखी का चलन

नो किचन ट्रेंड - स्वास्थ्य की अनदेखी का चलन:       •••••••••••••••••••••••••

ओपन किचन के बाद लेटेस्ट ट्रेंड है घर से किचन का ही नदारद होना.......!!      ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~   

मुंबई, बेंगलुरु और दिल्ली जैसे मेट्रोपोलिटन शहरों के बेहद महंगे इलाकों में आजकल एक नया चलन सामने आया है। अब वहां ‘नो किचन अपार्टमेंट’ बन रहे हैं। पहले घरों में रसोई होती थी, फिर बड़े शहरों और ‘ओपन किचन’ का चलन आया, अब बिना किचन के फ्लैट बन रहे हैं।break-word इनमें एक स्लैब होता है और खाना गर्म करने के लिए माइक्रोवेव, चाय बनाने के लिए इलेक्ट्रिक कैटल और बेक करने के लिए अवन बना होता है। न गैस सिलेंडर, न कोई पाइप लाइन

  इस नए चलन के मुताबिक खाना बनाना बहुत ही ‘मिडल क्लास’ चीज है। आज भी बहुत से फिल्मी सितारे खाना बनाना बिल्कुल नहीं जानते। उनके घर तो नौकरों की कतार लगी होती है। पर उसके बाद भी 'हाई-क्लास’ लोग सिर्फ़ बाहर से खाना मंगवाना पसन्द करते हैं और उसकी तस्वीर खींचकर सोशल मीडिया पर डालना भी एक शगल हैं।

  खाने से सम्बंधित पच्चीसों तैयारी, फिर उसमें समय भी खपाओ।और रसोई का फैलावड़ा , खाना पकाने से बर्तनों का गंदा होना फिर उन्हें मांजना पड़ता है, तो इस तरह के काम कौन करे ...जब वही सब बना बनाया मिल जाता है। फिर किचन नहीं रहेगा, तो शादी के बाद ‘लड़की को खाना बनाना नहीं आता’ जैसे ताने भी नहीं सुनने पड़ेंगे।">अब आपका सवाल होगा कि बिना किचन के काम कैसे चलता है। हमने इसका जवाब पता किया। जवाब है कि कुछ करोड़ के एक कमरे वाले इन फ़्लैट की पूरी बिल्डिंग का एक ही किचन होता है जिसे ‘डार्क किचन’ कहते हैं।

  अगर रात के एक बजे भी आपको चाय या कॉफी की तलब उठेऔर आप इण्टरकॉम पर सूचना दें तो वह आपको फटाफट मिल जाएगी। हां, इसका खर्च काफ़ी मोटा होगा। भई, तभी तो पता चलेगा कि आप पैसे वाले हैं।

  फिर इस तरह की इमारतों में काम करने वाले ज़्यादातर लोग IT कंपनियों में काम करते हैं। इनमें से ज़्यादातर को ऑफ़िस में ही अच्छा और मुफ़्त भोजन मिलता है।

  वीकेंड पर आधे टाइम बाहर खाने या मंगाने का चलन रहता है, तो रसोई की जरूरत नाम भर के लिए ही होती है। अब अगर आपको लग रहा हो कि ये किसी दूसरी दुनिया की बात है और हमारे-आपके समाज में ये चल नहीं पाएगा, तो बस कुछ साल इंतजार कीजिए।

  दो पीढ़ी बाद के लोग कहेंगे कि हमारी दादी के समय पर तो रोज घर पर ही खाना बनता था। तब शायद अगली जेनरेशन के लिए ये बातें ताज्जुब से भरी हों

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