व्यवस्था से उपजता रोष

व्यवस्था से उपजता रोष :      •••••••••••••••••••••••• 

सामाजिक तानाबाना कुछ इस तरह गूंथा हुआ है कि हर चरित्र का एक निश्चित खाका सा खींच कर रख दिया है। और जब भी कोई घटना दुर्घटना होती है तो उस खाके के आधार पर उसका आंकलन किया जाने लगता है। जिससे उस स्थिति के मायने ही बदल जाते हैं।

हालिया 31 दिसम्बर की रात स्कूटी चलाती एक युवती किसी बड़ी गाड़ी से टकरा कर उसके पहियों में फंस कर तकरीबन 12 किलोमीटर तक घिसटती चली गयी। मरना तो तय था ही उसका। पर घटना को जिस तरह बताया जा रहा है वह निहायत ही शर्मिंदगी पूर्ण है। बड़ी गाड़ी के सवार रसूखदार ही होंगे जो उस मर गयी युवती के गुनहगार नहीं हो सकते। गुनहगार वह लड़की थी ये साबित करने के लिए उसे अत्यधिक शराब पीकर स्कूटी चलाने वाली लड़की बताया जा रहा। जो मर ही गया उसे कुछ भी कह लो क्या फ़र्क़ पड़ता है। लेकिन जो जिंदा है उनकी अस्मिता बनाये रखने के लिए शायद लेन देन का ही सहारा लिया गया होगा।

बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज पैसा किसी की मौत , इज्जत और सच्चाई सब कुछ खरीद सकता है। स्थितियां बदल कर कुछ और बनाई जा सकती है। 

एक परिवार से एक इंसान चला गया। जीता जागता इंसान जो बोलता था, बतियाता था, हंसता था दूसरों को सुनता था, अपनी कहता था ...अचानक वह गायब हो गया। जब जब उसे याद किया जाएगा। वह तेज़ रफ़्तार रौंदती हुई बड़ी गाड़ी याद आएगी। उसके पहियों में फंसा चीखता चिल्लाता वह इंसान याद आएगा। कि अंत समय वह कुछ कह रहा था। पर बड़ी मोटर गाड़ी की आवाज़ ने उसकी चीखें दबा दी। 

ये तो एक सामान्य सी घटना है इस पर इतना शोक विलाप क्यूँ...? ? ? ? 

बड़ी गाड़ी होने का मतलब ही ये है कि सवार बड़े लोगों का बड़प्पन ही ये है कि वो मामूली लोगों के साथ हुए आम हादसों पर ध्यान नहीं देते। तभी तो पहियों में फँसी स्कूटी और लड़की का उनको आभास ही नहीं हुआ। घिसटती हुई लड़की के कपड़े पूरे फंट गए वह नग्न हो गए। यही उसकी नियति थी।  बस ईश्वर से यही कहना है कि एक दिन मरना तो सभी को है। पर इस तरह बड़े लोगों की मेहरबानीयों से जुड़ी मौत मत दो....आमीन !!

★★★★★★★★★★★★★★★

Comments