अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मायने

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मायने : •••••••••••••••••••••••••••••

हम आज़ाद देश में रहते हैं।संविधान ने हमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ी बहुत सी छूट दी है। जिसे हम समाज में रहते हुए अपना सकते हैं। और ये जरूरी भी है। क्योंकि हर किसी का अपना मत होता है। और उसे व्यक्त करने की आज़ादी भी। पर क्या ये सही है कि आपके मत को व्यक्त करने की कवायद से कोई दूसरा अगर awkward  महसूस करें। समाज में रहने के कुछ नियम है इन्हें तो शायद पशु समाज भी follow करता ही होगा। पर हम इंसान क्या modernise होने के चक्कर में अपने संस्कारों से इतने नीचे गिरते जा रहे कि समाज में रहने के मूलभूत नियमों को भी दरकिनार करने लगे हैं।

         शर्म है आने वाली उस नई पीढ़ी पर जो अभिव्यक्ति की आज़ादी को नंगेपन से आंकती है। वस्त्र उतार कर शरीर दिखाना अभिव्यक्ति की आज़ादी कत्तई नहीं है। ये आज़ादी तब माकूल मानी जाती है जब किसी बाहरी बचाव में आपको अपनी बात कह कर सबको अपना पक्ष दिखाना होता है, ना कि अपना शरीर। ईश्वर ने स्त्री पुरुष को एक बेहतरीन रचना के साथ गढ़ा है। हर शरीर की अपनी एक खासियत होती है। और वह ख़ासियत अंतिरिक होते हुए अपनी छवि से अगर दूसरे को आकर्षित करें तो ये ऊपरवाले की रचना का सम्मान है।

   यह लेख अभी हाल ही में दिल्ली मेट्रो में सफर करने वाली एक सामान्य पंजाबी परिवार की अति सामान्य लड़की जो निहायत ही कम कपड़ों में दिखी। उस संदर्भ में है। सोचनीय बात ये है कि वो लड़की तो नई पीढ़ी की है जो इस अधनंगेपन को अपनी आजादी समझ रही पर क्या उसके मां बाप भी इस अधनंगेपन को अपनी बच्ची के लिए आज़ादी समझ कर स्वीकार कर चुके हैं। और क्या अब जब उस लड़की का वीडियो इस कदर वायरल हो रहा है तब वह गर्व से ये कह पा रहे होंगे कि ये हमारी बेटी है जिसने सिर्फ मशहुर्रियत के लिए ये स्वांग किया है...???

शर्मिंदगी ये नहीं कि वह लड़की खुद को publicize करने की जुगत में ये सब कर रही। शर्मिंदगी ये है कि वह इन अधनंगे वस्त्रों में जिस सार्वजनिक सवारी में सफर कर रही उसमें हमारे जैसे बहुत से सामान्य परिवारों की बच्चियां भी आती जाती है। जो भले ही अच्छे वस्त्र पहनी रहती हो पर एक समय बाद उनके भी शरीर का वस्त्रों के अंदर से एक्सरे इसी तरह निकाला जाएगा। क्योंकि कामुकता और वहशीपन उम्र, कपड़े या जगह नहीं देखता। 

क्या ही कहें , मां हूँ तो ये महसूस कर पा रही कि किसी की बेटी की ऐसी हरकत एक पूरे समाज को कालिख़ लगाती है। मशहूर होने का ये मतलब तो नहीं कि इज्जत को तार तार करके आप पब्लिक हो जाओ। पश्चिमी सभ्यता को follow करते करते हम क्या इतने बेसुध हो गए कि हम जिस भारतीय समाज में रहते हैं उनके मूल्यों को भूल गए।



एक मां हूँ और इस नाते ये चित्र डालना तो नहीं चाह रही थी पर जब तक प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं देती तब तक इस लेख का मन्तव्य समझ नहीं आता कि नई पीढ़ी किस कदर राह भटक चुकी है। फिल्मी प्रभाव और पश्चिमी सभ्यता ने किस तरह एक अनमोल संस्कारों की वरासत को खत्म कर्म ये नंगापन परोसा है।

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