दरकता विश्वास टूटते रिश्ते
दरकता विश्वास, टूटते रिश्ते। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कल के ही अखबार में एक खबर थी जिसे पढ़ कर आत्मा तो छलनी हुई। रिश्तों पर से विश्वास भी उठने लगा। इंसान अपनी इच्छाओं के वशीभूत होकर कितना अंधा हो जाता है उडक ज्वलंत उदाहरण है।
एक परिवार में दो बेटियां हैं बड़ी अभिभावकों के साथ रहकर पढ़ रही दूसरी कहीं बाहर रहकर। बड़ी बेटी लंबे समय से एक समस्या से जूझ रही थी। पर कुछ कहती ना थी। चुपचाप सहे जा रही थी। पर जब बात छोटी बहन पर भी आई तब उसने विरोध के स्वर उठाये और अपने आरोपी के खिलाफ एक्शन लिया।
बड़ी बेटी जब भी पिता से पढ़ने के वास्ते खर्च या फीस के पैसे मांगती। उसका पिता कहता कि यूँ ही तुझे पैसे नहीं दिए जाएंगे। इसके बदले तू मुझे ख़ुश कर। और वह हर बार जबर्दस्ती अपनी ही बेटी का शारीरिक शोषण कर उसे पैसे देता था। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात ये की ये माँ को पता चल गया। पर वह चुप रही। क्यों ....समझ नहीं आया। क्या उसके भी आंख की शर्म, दिल की ममता और पत्नी होने का दम्भ मर गया था जो अपनी ही बेटी का सगे पिता के हाथों शोषण देख कर वह चुप रही। क्या कहें ...ये सब जानकर सच में इंसानी फितरत से घृणा होने लगती है। पिता के नाम पर वह पुरुष और माँ के नाम पर वह औरत सजा की दोषी है। बात तब खुली जब छोटी बेटी ने भी पढ़ाई के खर्च के लिए पैसे मांगे और पिता ने वही अपेक्षा उससे भी की। तब बड़ी बहन छोटी बहन के शोषण पर भड़क उठी और पुलिस में अभिभावकों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई।
हमारी भारतीय संस्कृति में कुछ रिश्ते पवित्र और दूरी बनाए रखने वाले माने जाते है। जिसकी वजह से आज भी परिवार समाज और देश में मान्यताएं जिंदा है। पर इस तरह की घटना न झिंझोड़ देती है। और रोएं रोएं से क्रोध और निराशा जन्म लेने लगती है।
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