एक नयी शुरुआत ,एक नया रिश्ता ……… !
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता , कभी जमीं तो कभी आसमान नहीं मिलता................... पिछले कुछ दिन मेरी गैरमौजूदगी का कारण यूँ तो बहुत नया नहीं है और न ही उसके लिए कोई सफाई दिया जाना सही है पर सत्य यही कि पिछले कुछ दिनों से मेरा कम्प्यूटर ख़राब हो गया जिसे ठीक करवाने में और पुनः उसे उसी स्थिति में लाने में ये समय निकल गया। इस वजह से हटकर कुछ व्यस्तता मेरी बिटिया के दाखिले की भी थी। आज कल बच्चों को दाखिले के लिए जिस परिस्थिति से रूबरू होना पड़ता है वह हमारे समय में नहीं थी। उस समय तो 60 % आ जाना ही प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होना होता था और उसी में अभिभावक ख़ुशी से झूम उठते थे। आज हाल ये है कि मेरी बेटी के 94. 5 % आने के बाद भी दाखिले के लिए मारा मारी करनी पड़ी। हालाँकि उसे दिल्ली में मनपसंद विश्विद्यालय में और कोर्स में दाखिला मिल गया। तो यही कहेंगे की अंत भला तो सब भला। पर इस सब के बीच मेरे नियमित पाठक व्यथित हुए उसका मुझे खेद है। जीवन यही की कोई भी कार्य निरंतर रखने के लिए एक लम्बी जद्दोजहद करनी पड़ती है और इस में कभी कभी हार का भी सामना करना पड़ता है। जैसा की मैंने पाया अपने पाठकों का विश्वास खो कर। पर फिर भी मैं आशान्वित हूँ कि मेरी लेखनी और उनका चाव मुझे फिर से उसी मुकाम पर ले आएगा और फिर मैं उनके लिए कुछ नियमित और रुचिकर लिखती रहूंगी।समय बड़ा बलवान है और इसी समय से अपने लिए कुछ अपेक्षाएं रख कर कार्य करते रहना हौसला कहलाता है। यही हौसला मेरे भावों को पुनर्जीवित कर नए सिरे से अपने पाठकों को एक सूत्र में बांधने का आह्वान कर रहा है। उम्मीद पर दुनिया कायम है और जीवन का दूसरा नाम उम्मीद है ................
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता , कभी जमीं तो कभी आसमान नहीं मिलता................... पिछले कुछ दिन मेरी गैरमौजूदगी का कारण यूँ तो बहुत नया नहीं है और न ही उसके लिए कोई सफाई दिया जाना सही है पर सत्य यही कि पिछले कुछ दिनों से मेरा कम्प्यूटर ख़राब हो गया जिसे ठीक करवाने में और पुनः उसे उसी स्थिति में लाने में ये समय निकल गया। इस वजह से हटकर कुछ व्यस्तता मेरी बिटिया के दाखिले की भी थी। आज कल बच्चों को दाखिले के लिए जिस परिस्थिति से रूबरू होना पड़ता है वह हमारे समय में नहीं थी। उस समय तो 60 % आ जाना ही प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होना होता था और उसी में अभिभावक ख़ुशी से झूम उठते थे। आज हाल ये है कि मेरी बेटी के 94. 5 % आने के बाद भी दाखिले के लिए मारा मारी करनी पड़ी। हालाँकि उसे दिल्ली में मनपसंद विश्विद्यालय में और कोर्स में दाखिला मिल गया। तो यही कहेंगे की अंत भला तो सब भला। पर इस सब के बीच मेरे नियमित पाठक व्यथित हुए उसका मुझे खेद है। जीवन यही की कोई भी कार्य निरंतर रखने के लिए एक लम्बी जद्दोजहद करनी पड़ती है और इस में कभी कभी हार का भी सामना करना पड़ता है। जैसा की मैंने पाया अपने पाठकों का विश्वास खो कर। पर फिर भी मैं आशान्वित हूँ कि मेरी लेखनी और उनका चाव मुझे फिर से उसी मुकाम पर ले आएगा और फिर मैं उनके लिए कुछ नियमित और रुचिकर लिखती रहूंगी।समय बड़ा बलवान है और इसी समय से अपने लिए कुछ अपेक्षाएं रख कर कार्य करते रहना हौसला कहलाता है। यही हौसला मेरे भावों को पुनर्जीवित कर नए सिरे से अपने पाठकों को एक सूत्र में बांधने का आह्वान कर रहा है। उम्मीद पर दुनिया कायम है और जीवन का दूसरा नाम उम्मीद है ................
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