वाह वाह राम जी ........
ये दुनिया क्या बनाई ,
अपनी अपनी गाने में ,
कभी सुनी न पराई। (१ )
वाह वाह राम जी...........
ये लालसा क्यों बनाई ,
इच्छाओं की गठरी ढोने में,
खुशियां ही बिसराई। (२)
वाह वाह राम जी .........
ये जिज्ञासा क्यों बनाई ,
फटे में टांग अड़ाने की ,
अब आदत है अपनाई । (३)
वाह वाह राम जी .........
ये मस्ती क्यों बनाई ,
संजीदगी से जीवन जीने का ,
तरीका भूल गए भाई। (४)
वाह वाह राम जी .......
ये खुदगर्जी क्यों बनाई ,
स्वार्थपरता के भ्रम में ,
रिश्तों की पूंजी गवाईं। (५)
वाह वाह राम जी...........
ये उद्दंडता क्यों बनाई ,
सम्मान भूल कर निंदा की,
नियत है सिखाई। (६)
वाह वाह राम जी ..........
ये चंचलता क्यों बनाई ,
निष्क्रियता में छुपी हुई ,
सादगी न समझाई। (७)
वाह वाह राम जी ............
ये सम्पन्नता क्यों बनाई
और बेहतरी की कामना में,
सिर्फ धन की चाह बढ़ाई। (८ )
वाह वाह राम जी ...........
ये हैसियत क्यों बनाई ,
ऊंचाई बढ़ाने की ही खातिर ,
गलत राहों पर ले आई। (९ )
वाह वाह राम जी........
ये दुनिया क्या बनाई ,
सब को सिर्फ अपनी पड़ी है,
एक दुनिया ही अलग बनाई। (१०)
ये दुनिया क्या बनाई ,
अपनी अपनी गाने में ,
कभी सुनी न पराई। (१ )
वाह वाह राम जी...........
ये लालसा क्यों बनाई ,
इच्छाओं की गठरी ढोने में,
खुशियां ही बिसराई। (२)
वाह वाह राम जी .........
ये जिज्ञासा क्यों बनाई ,
फटे में टांग अड़ाने की ,
अब आदत है अपनाई । (३)
वाह वाह राम जी .........
ये मस्ती क्यों बनाई ,
संजीदगी से जीवन जीने का ,
तरीका भूल गए भाई। (४)
वाह वाह राम जी .......
ये खुदगर्जी क्यों बनाई ,
स्वार्थपरता के भ्रम में ,
रिश्तों की पूंजी गवाईं। (५)
वाह वाह राम जी...........
ये उद्दंडता क्यों बनाई ,
सम्मान भूल कर निंदा की,
नियत है सिखाई। (६)
वाह वाह राम जी ..........
ये चंचलता क्यों बनाई ,
निष्क्रियता में छुपी हुई ,
सादगी न समझाई। (७)
वाह वाह राम जी ............
ये सम्पन्नता क्यों बनाई
और बेहतरी की कामना में,
सिर्फ धन की चाह बढ़ाई। (८ )
वाह वाह राम जी ...........
ये हैसियत क्यों बनाई ,
ऊंचाई बढ़ाने की ही खातिर ,
गलत राहों पर ले आई। (९ )
वाह वाह राम जी........
ये दुनिया क्या बनाई ,
सब को सिर्फ अपनी पड़ी है,
एक दुनिया ही अलग बनाई। (१०)
Comments
Post a Comment