संभवतः मेरी गैरमौजूदगी हमारे उस सम्बन्ध को फीका कर देती हो जो आप पाठक मुझसे जुड़े रह कर जोड़ना चाहते हैं पर शायद इसे परिस्थिति की विडम्बना कहिये या समय का फेर कि जो समय मैं अपने लेख के जरिये आप से जुड़ कर बांटना चाहती हूँ वह मुझे अपने परिवार के सदयों या कार्यों को देना पड़ता है। वैसे इस तथ्य से मैं अनजान नहीं की यदि मैं नियमित न भी होती हूँ तो भी मेरी पाठक संख्या निरंतर चालू रहती है कम् या ज्यादा होना मेरे लिए मायने नहीं रखता। लोग मुझे पढते है चाहे भले ही वह मेरे पहले के लिखे लेखों में अपना समय गुजारें। मेरे लिए यही काफी है। 
           रूचि एक जरिया है किसी से भी जुड़ने का। आप जब तक किसी में अपनी रूचि को शामिल नहीं करेंगे , तब तक आप उसमे अपना अंश नहीं देख पाएंगे और जब तक अपने से जुड़ा कुछ भी आप की नहीं मिलेगा आप उस से जुड़ नहीं पाएंगे। इस लिए मेरा सोचना ये है कि मैं जो भी अपने लेखों के जरिये व्यक्त करती हूँ। वह कहीं न कहीं आप के मन या जीवन से जुड़ा रहता है। ये सत्य भी है कि मैं उन्ही मुद्दों को सामने लाने का प्रयास करती हूँ जो तात्कालिक हों और जिन का प्रभाव हमारे सामाजिक जीवन पर ज्यादा पड़ता हो। या फिर वह समस्याएं जिनके हल कई तरह से निकले जा सकते हैं।  
                    कभी कभी ऐसा होता है कि कोई समस्या इतनी सरल सी होती है पर हम मन ही मन उसे इतना विशाल बना देते हैं कि आगे के सारे रास्ते बंद से  हो जाते हैं पर यदि कोई उस से सम्बंधित एक छोटा सा भी सुझाव दे देता है तो हमें उसके लिए एक राह मिल जाती है।  यही मेरी कोशिश होती है। कि एक आम सी लगने वाली एक स्थिति का नए सिरे से आकलन करू जो हम सब के नजरिये में एक नया बदलाव लाये। यही प्रयास मैं हमेशा करूंगी। बस मेरी ये गुजारिश है कि आप मुझे ऐसे ही पढ़ते रहें और अपनी रूचि बनाये रखे क्योंकि थोड़ा ही सही हौसला जरूरी है मंजिल पर पहुँचने की कोशिश के लिए। 

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