रंग बदलते लोग ........... !
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मैंने हर रोज ज़माने को रंग बदलते देखा है ,
उम्र के साथ जिंदगी को ढंग बदलते देखा है। 
जिनकी नजरों की चमक से सहम जाते थे लोग ,
उन्ही नजरों को बरसात की तरह रोते हुए देखा है। 
जिनके हाथ के एक इशारे से टूट जाते थे पत्थर उन्ही हाथों को आज पत्तों की तरह काँपते हुए देखा है। 
जिनकी आवाज से बिजली के कड़कने का होता था गुमान ,
उनके होठों पर जबरन चुप्पी का ताला लगा देखा है
वो जो चलते तो शेर के चलने का होता अहसास 
उनको भी पाँव उठाने के लिए सहारे को तरसते देखा है
आज , खुद पर इतना भी क्या इतराना यारों ,
वक्त की धार में अच्छे - अच्छे को बहते देखा है। 
जो कुछ भी है तेरे पास सब उसकी देन है वरना ,
सब कुछ रहते हुए भी इंसान को बेजान सा जीते हुए देखा है। 
 हो सके तो किसी को खुश कर के जग जीतो ,
 दर्द और दुःख देते हुए तो हजारों को देखा हैं। 
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