दस्तक...अब तो होश में आने की ...!!◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
अब समय आ गया है जब हम बेटों के जन्म की खुशियां नहीं मनायें क्योंकि अगर आज की खुशी कल किसी और के गम का कारण बनती है तो वह खुशी आने वाले गम की दस्तक है घर में बच्चे के जन्म का उत्सव हमारे लिए तभी सार्थक हो सकता है जब हम उन्हें संस्कार और विचार से पालने की सोच को महत्व दें।
हमारे आस पास बहुत सी ऐसी घटनाएं होती रहती हैं जो हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या हम अपने परिवार में बेटे के जन्म पर होने वाले उत्सव या खुशी को जीवन भर कायम रख सकते हैं ? ? क्या जीवन भर हम उस बेटे के अच्छे आचरण और संयमित व्यवहार की गारंटी ले सकते हैं ? ? क्या हम अपने बेटे को भावनाओं को नियंत्रण में रखना सिखा सकते हैं ? ? ऐसे बहुत से सवाल हैं जो बेटे के जन्म के साथ ही माता-पिता को सोचना शुरु कर देना चाहिए जिससे उनके बड़े होने के साथ-साथ उनमें वह संस्कार और सोच डाली जा सके कि कल वह किसी और के दुख का कारण न बने।
क्यों एक लड़की या फिर एक औरत घर और बाहर के माहौल को एक तरह का समझ नहीं पाती उसे पता है कि घर से बाहर उसे देखने ताड़ने , कुचलने और नोचने के लिए ऐसे बहुत से दरिंदे घूम रहे हैं जो शायद दिखते तो इंसानों की तरह ही है पर उनकी मानसिकता वहशी जानवरों से भी बदतर है । प्रियंका रेड्डी बलात्कार और हत्याकांड ने एक बार फिर साबित कर दिया कि औरत सिर्फ और सिर्फ़ इस्तेमाल की चीज है उसे लाख देवी या ईश्वरीय शक्ति का दर्जा दिया जाए लेकिन फिर भी आदमी की नजर में औरत सिर्फ एक ही उपयोग की वस्तु है। ऐसा उपयोग जो सिर्फ क्षणिक भावनाओं को शांत करने के लिए किया जाए।
जागो बेटा पैदा करने वाले अब तो जागो और अपने बेटों को जन्म से ही वह संस्कार दो और सोच दो जिससे वह अपने घर की औरतों की तरह ही बाहर भी सभी औरतों को इज्जत की नजर से देख सकें।
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