दिमाग और दिल दोनों का समयानुसार प्रयोग
दिमाग और दिल दोनों का समयानुसार प्रयोग.....! ••••••••••••••••••••••••••••••
हमें ईश्वर ने दिल और दिमाग दोनों दिया है। जिसे समयानुसार प्रयोग करने से ही जीवन सुचारू चलता है । जितना सुना जाए उसके अंदर क्या सार छिपा है यह हम अपनी बुद्धि से समझबूझ सकते हैं और दिल से महसूस कर सकते हैं। पर हम उनकी समयानुसार नहीं सुन और समझ कर मुश्किलें बढ़ाते हैं।
एक बार एक गाँव में सभी एक समस्या से जूझ रहे थे। थोड़ी दूरी पर एक संत ने आकर बसेरा किया । बहुत विचार विमर्श के बाद भी जब सभी किसी समाधान पर नहीं पहुंची। तो किसी ने कहा कि क्यों ना हम महात्मा जी के पास अपनी समस्या को लेकर चलें। सभी संत के पास पहुँचे। जब संत ने गाँव के लोगों को देखा तो पूछा कि "कैसे आना हुआ।" तो लोगों ने कहा, "महात्मा जी गाँव भर में एक ही कुंआ है और कुएँ का पानी हम नहीं पी नहीं पा रहे हैं।
संत ने पूछा, "हुआ क्या, पानी क्यों नहीं पी सकते हो?"
गाँव के लोग बोले कि, "दो कुत्ते लड़ते-लड़ते उसमें गिर गए थे, जो बाहर नहीं निकल पाने के कारण उसी में डूब कर मर गए। हम इस पानी को कैसे पियें, महात्मा जी?"
संत ने कहा, "एक काम करो, उसमें गंगाजल डलवाओ।" कुएँ में आठ दस बाल्टी गंगाजल छोड़ दिया गया फिर भी समस्या उसी तरह बनी रही। लोग फिर से संत के पास पहुँचे।
संत ने कहा, "भगवान की कथा कराओ।" लोगों ने कहा, "ठीक है।" कथा हुई फिर भी समस्या खत्म नहीं हुई ।
लोग फिर संत के पास पहुँचे। इस बार संत ने कहा, "उसमें सुगंधित द्रव्य डलवाओ।" सुगंधित द्रव्य डाला गया, नतीजा फिर वही।
अब संत खुद चलकर आए। लोगों ने कहा, "महाराज वही हालात है, हमने सब करके देख लिया, गंगाजल डलवाया, कथा भी करवाई, प्रसाद भी बांटा, सुगंधित पुष्प और बहुत चीजें डालीं।"
अब संत ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा कि, "तुमने सब कुछ किया, लेकिन वे जो मरे कुत्तेइस कुँए में मरे पड़े थे उन्हें निकाला कि नहीं?
लोग बोले, "उसके लिए ना आपने कहा था, ना हमने निकाला। बाकी सब किया, वह तो वहीं के वहीं पड़े हैं।"
यह सुनकर संत एक बार हैरान हो गए और फिर उन्होंने बड़े शांत भाव से उन्हें समझाया कि, "पानी में पड़े हुए मृत शवों को जब तक बाहर नहीं निकालेंगे, तब तक बाहरी उपायों का कोई भी प्रभाव नहीं होने वाला है। सबसे पहले भीतर पड़ी हुई, उस गंदगी को पानी से बाहर निकाले।"
ऐसी ही कथा हमारे जीवन की भी है। इस शरीर नामक गाँव के अंतःकरण के कुएँ में, काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या नाम के कई जानवर लड़ते झगड़ते गिर गए हैं और दीमक की तरह से चिपक गए हैं।
ये हमारे अन्तःकरण को अंदर से धीरे-धीरे सड़ा रहे हैं। सोचने की बात ये है कि हम उससे बाहर निकलने के लिए क्या कर रहे हैं ?
हम खुद को बेहतर बनाने के लिए हर पल बाहर से तो कई चीजें भीतर ले रहे हैं ,पर जो पहले से ही भीतर सड़ रहा है या जमा है उसे निकालने के लिए हम क्या कर रहे हैं ? ? एक बार इस पर विचार जरूर करे । अपने अन्तर्मन को साफ़ कर लें तो बाहर भी हर एक चीज़ साफ़ दिखाई देगी। अन्तर्मन को सँवार लें तो बाहर भी सबकुछ सुन्दर हो जाएगा।
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