स्व परिवर्तन औरस्वयं को समर्थ बनाने का प्रयास

स्व-परिवर्तन और स्वयं को समर्थ बनाने का प्रयास.....!!      ••••••••••••••••••••••••••••••

दिल जो है, वो हमारा स्वमान बढ़ाता है                  दिमाग जो है, वो हमारा अभिमान बढ़ाता है ।      दिल अर्थात हमारी दिव्य बुद्धि, divine intellect   दिमाग अर्थात हमारी स्थूल बुद्धि, materialistic intellect

यह दुनिया का खेल हमारे कर्मों पर आधारित होता है। जिसने जो कर्म किए, उसे उसका फल मिलता ही मिलता है। 

बस फर्क केवल इतना होता है कि जो सच्चे दिल से करता है, वो तो अपना भाग्य ऊँचा बना लेता है ... और जो दिमाग से अर्थात स्वार्थ वश होकर करता है, उसका रावण अर्थात अहंकार बड़ा हो जाता है। 

संकल्प  (विचार) ही सब कुछ हैं। संकल्प एक powerful power है। इसलिए, जितने हम positive होते हैं, उतने ही हम safe होते हैं। 

ईश्वर हमारी power को बढ़ाता है, हमारा मनोबल भी बढ़ाता है । तो जब हमारा मनोबल मज़बूत रहता है, तब हमारे ऊपर कोई भी चीज़, बात या परिस्थिति का प्रभाव नहीं आता और हम निडर और स्थिर रहते हैं।

ये जो डर है, यही सारी बीमारियों की जड़ है। जब इंसान डर जाता है, तो वह उसकी पकड़ में आ जाता है और वो बीमारी की तरह मनमस्तिष्क में फैलने लगता है ... और जो इंसान निडर रहता है, तो उसकी inner power maintained रहती है, जिससे कि उसका immune system भी strong रहता है और वो हर बीमारी से स्वयं को safe रख पाता है।

स्व परिवर्तन करने में, किसी व्यक्ति की अंतरात्मा को क्या मुश्किल लगता है...? ?     

किसी भी आत्मा को अपने संस्कारों के against जाकर कार्य करना मुश्किल लगता है। जैसे शान्ति में विश्वास करने वाला सामना करने से डरता है जैसे कि अर्जुन महाभारत के युद्ध में डर रहे थे ,श्री कृष्ण के समझाने पर उन्हें अपने कर्तव्य का भान हुआ ।

लेकिन जो सामना करने की शक्ति रखता है साहसी है उसे खुद को शान्त रखना मुश्किल लगता है...! 

तो हमें सहज रास्ता अपनाकर, अपने संस्कारों के according चलना ही ठीक लगना चाहिए। क्योंकि हम ढल चुके होते हैं उस हिसाब से और एक belief system, एक pattern बना चुके होते हैं, जिसके पार जाने का हम नहीं सोचते ... और इस कारण ही हम स्व परिवर्तन कर नहीं पाते। 

क्योंकि यह परख और समझ ही हमारे स्व-परिवर्तन के रास्ते को आसान करेगा

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