सावधान ब्रमांड सुन रहा है

 सावधान: ब्रमांड सुन रहा है !   ••••••••••••••••••••••••••••

ये लेख पढ़ने से पहले आप सभी को इसका शिर्षक पढ़ कर ये लगेगा कि ये तो एवेईं ही कहा जा रहा। शायद ऐसा कुछ होता ही नहीं है। क्योंकि ये सिर्फ़ विश्वास की बात है। हम अपनी जिंदगी के जो भी लम्हें गुजारते हैं। उसमें हमारी किस्मत या भाग्य का जितना अंश होता है तकरीबन उतना ही हमारे व्यवहार, बोली गई-सोची गई बातें और कर्म का भी होता है। क्योंकि हमारे आस पास का ब्रमांड हमें निरंतर सुनता रहता है। वो हमारी body vibes को भी feel करता है । बस हम उसकी प्रतिक्रिया को जिंदगी का हिस्सा मान कर अनदेखा कर देते हैं जबकि वह किसी ना किसी रूप में हमारी बातों का जवाब हम तक पहुंचा रहा होता है। अब इसे एक उदाहरण से समझा जाये......

अगर आप किसी को कहते है कि आप उन्हें पांच मिनिट बाद वापस फोन करेंगे,और फिर नहीं करते, तो आप अपने संवाद को ब्रह्माण्ड से नष्ट कर देते है।आप चाहे माने या ना माने पर यह अटूट सत्य है कि ब्रह्मांड में भी प्राण होते है वह भी हर समय आपकी हर बात को ध्यान से सुन रहा होता है।

अतः जब आप कुछ करने को कहते है और फिर उसे नहीं करते तो यह मान कर चलिए कि इसी तरह बार बार होने पर आप अपने शब्दों की शक्ति को खोने लगते हैं और लगातार ऐसा करते रहने पर एक स्थिति वह आ जाती है कि ब्रह्मांड आप पर से अपना विश्वास खो देता है। वह सोचता है कि आप अपने वचन पर अमूमन स्थिर नहीं रहते। फलस्वरूप फिर कभी भी आप द्वारा कहे गए वचनों का किसी पर भी यहां तक के आप पर भी उनका कोई प्रभाव नहीं रहता,और आप हर ओर हार का सामना करते रहेंगे।

भारतीय योगशास्त्र शब्दों का इस्तेमाल बड़ी सावधानी के साथ करने को कहता है। ताकि आप उनकी शक्ति को कमजोर ना कर सके। जब आप कुछ कहते है और कहे अनुसार ही काम करते है, तो आप अपने शब्दों कि शक्ति बढ़ा रहे होते है। इसके लिए एक अन्य गुण भी अति आवश्यक है कि आप सच्चाई पर डिगे रहें। क्योंकि ब्रमांड झूठ में उलझ कर रह जाता है। जबकि सत्य उसे उस बात को फलीभूत करने की ओर उद्दत करता है।

भारतीय योगशास्त्र कहता है कि जब आप इस गुण में पारंगत हो जाते है, तो आपके हर शब्द में वास्तविकता रचने की शक्ति स्वयं आ जाती है। और एक हद तक की ब्रह्मांड स्वयं आपके शब्दों के अनुसार कार्य करने लगता है। प्राचीन काल में यही हमारे ऋषि मुनियों के वरदान और श्राप देने का वैज्ञानिक रहस्य है,जो हर हाल में फलिभूतित होता ही है। वे लोग बोल कर, किसी को स्वस्थ कर देते है। या उनकी सभी परिस्थितियों को बदल देते है । यही श्राप या वरदान का वैज्ञानिक अर्थ होता है। 

अतः ये समझना अति आवश्यक है कि हमें निरंतर सुनने वाला ब्रमांड हमारी ताकत बन जाये ये हमारी प्रकृति , व्यवहार और दृढ़ता पर निर्भर करता है। 

एक फ़िल्म में एक डायलॉग है कि जब किसी चीज़ को शिद्दत से चाहो तो सारा ब्रमांड तुम्हें उससे मिलने की कोशिश करने लगता है। 

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