मां तेरे ऐब भी कितने कमाल है

माँ, तेरे ऐब भी कितने कमाल है..!!

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मां,....मैनें मां बन कर जाना                    

तेरे वो ऐब भी कितने कमाल है

जिन बातों पर हम खीजते थे

वो गुण कितने बेमिसाल है                        

झट से रोना, झट से हँस देना                       

अपनी चिल्लाहट से घर भरना                   

अव्यवस्थाएं देख कुढ़ जाना  

पुनः व्यवस्था का ही ख़्याल है              

दूसरों की तारीफों कर हमें                  

कमतर बताना इक साजिश थी                    

हम नासमझ समझे नहीं वह                       

ऊंचाइयां छुलाने की तेरी चाल है                  

तेरी मिठास भरी चिकचिक सुन               

सोचते माँ भी न ग़ज़ब तिकड़मी है             

अपने मन की करवाने में उसे                 

घर की ही भलाई का तो ख़याल है               

भुलक्कड़ बन अनचाहा भूलना                

कभी बरसों पुराने का उलाहना देना            

तेरी इन तरकीबों में घर को जोड़े

रखने की काबिलियत का भ्रमजाल है    

 मां, मानते हैं तेरे बहुतेरे गुण जो 

अक्सर ऐब जैसे ही लगते हैं सबको

 उन्हें अपनाकर हम परिपक्व बने

और जिंदगी अपनी पटरी पर बहाल है

ए मां,..कुछ बाकी रह गया हो तो

वह भी सीखा देती तू अपने ऐबों से

आज अहसास होता है कि तेरी 

सीखें आज व्यस्त अंधेरों की मशाल है

माँ, तू जरा फ़िर चिल्ला के हमको 

बच्चा बना दे, मैं हूँ ना, ये अहसास करा दे

बहुत बड़े हो गए हम कि अब परवाह

भरी चिल्लाहट नहीं मिलती यही मलाल है 

मां अब जाना तेरे ऐब भी कितने कमाल हैं !!

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