मेरी अम्मा

मेरी अम्मा...!!              ••••••••••••••••





ये एक सार्वभौमिक 
सत्य है कि एक दिन ईश्वर के पास परमधाम जाना तो सभी को है। सभी की नियति पहले से लिखी जा चुकी है। पर क्यों किसी के अपने बीच से चले जाने के बाद उसको ना देख पाने की कसक दिल को इस तरह सालती है कि अपनी सांसें भी घुटने लगती हैं। अमूमन हम जीते जी किसी की भी अपनी जिंदगी में अहमियत सिर्फ़ अपनी जरूरत के हिसाब से तय कर लेते हैं जबकि उसकी असल क़ीमत हमें उसके ना रहने के बाद पता चलती है। क्योंकि भावनात्मक रूप से उसका होना हमारे लिए कितना सम्बल था ये हमें अपने रोजमर्रा की ज़िंदगी में उलझे हुए समझ ही नहीं आता है।                  

मुझे मेरी नानी जिसे मैं अम्मा कह कर बुलाया करती...ने ही पालपोस कर बड़ा किया। बचपन से ही मेरे बाबा (नाना) और अम्मा ने ही मुझे अपना सबसे छोटा बच्चा बनाकर रख लिया। आज वो अम्मा चली गयी। हमें छोड़ कर चली गयी। अब वो मुझे कभी नहीं दिखेगी। फ़िर भी दिल में इंतज़ार रहेगा कि उसका फ़ोन आएगा...अपनी बूढ़ी सी आवाज़ में "जया कैसी हो बच्चा" कहकर मेरा हालचाल पूछेगी। और फ़िर छोटे बच्चे की तरह चहक कर अपने लिए कुछ मनपसंद चीज़ भेजने को कहेगी...कि मुझे शक्करपारे बनाकर भेज दे, मीठी पूरी बना कर भेज दे वग़ैरह वग़ैरह । कहते है ना कि बच्चा बूढ़ा एक समान। अंत समय वो भी कुछ ऐसी ही हो गई थी। बाजार जाते समय , मेरे लिए भी कुछ ले आना जैसी बातें उसका बचपना दिखाने लगी थी। 

उसका जाना वो भी mother's day पर ...मुझे एक ऐसे खालीपन से भर गया। जिसमें मेरे बचपन की तमाम यादें गुंथी हुई थी। 

इसलिए जो लोग आसपास है जिनकी हमारी जिंदगी में अहमियत समझते रहना चाहिए। क्योंकि बाद में भले ही पछता लो वह आपके regrets  को देखने के लिए मौजूद नहीं रहेगा। 

ईश्वर मेरी अम्मा को शांति और श्रीचरणों में स्थान दें। 

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