गुणों को ताकत बनाओ

गुणों को ताकत बनाओ ;        •••••••••••••••••••••••••

हर ओर स्त्री की सुगम उपलब्धता ही उसके उपभोग को बढ़ा रही है। ईश्वर ने सृष्टि को चलायमान रखने के लिए पुरूष और स्त्री के अधिकारों को मापतौल कर रखा है। लेकिन प्राचीन काल से स्त्री को एक एसेट के रूप में समझा जाता रहा है। चाहे महाभारत काल हो या रामायण काल...स्त्री को पुरुष के लिए सूली पर चढ़ना पड़ा।                                          राजा महाराजों के काल से जीत की खुशी का अवसर हो तो स्त्री द्वारा नाच गाने का मनोरंजन , हार जाने पर स्त्री को पुरुस्कार रूप में प्रस्तुति, परिवार को ऊपर रखकर स्त्री की अनदेखी,स्त्री को सिर्फ घर कामकाज और जचगी के लिए उपयोग में आने वाली वस्तु, यही समझा गया। 

अब स्त्री को अपनी उपलब्धता पुरुष के लिए कठिन करनी होगी। इसके लिए सबसे पहले तो उसे पुरुष के सामने उसी तरह तन कर खड़ा होना होगा। जिस तरह पुरूष खड़ा होता है।और चाहे घर हो दफ्तर हो या कोई सार्वजनिक जगह...उसे हर पुरुष को अनदेखा करके अपने व्यक्तित्व को सुदृढ दिखाना है। ये भी सत्य है कि ईश्वर ने जो गुण स्त्री में समाहित किये हैं उससे ही उसकी पहचान है। अतः उन्ही गुणों को उसको अपनी ताकत बनाना है। 

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