पैसे की अहमियत और बढ़ता अकेलापन

 पैसे की अहमियत और बढ़ता अकेलापन....!!            •••••••••••••••••••••••••••••

हर मां-बाप अपने बच्चों के दिमाग में शुरू से पैसे की अहमियत भर देते हैं...बार-बार उन्हें बताते हैं कि पैसा सबसे जरूरी है पैसे के बिना दुनिया में कुछ नहीं है। इसलिए खूब पढ़ाई करो जिससे तुम्हें खूब पैसे वाली नौकरी मिले। इस सब के चक्कर में बच्चों के अंदर संवेदनशीलता की कमी हो जाती है 

बच्चे बड़े होते हैं और पैसे की खोज में निकल जाते हैं कहीं दूर...खूब पैसा कमाते हैं और हर चीज पैसे से ही तोलते हैं। शुरू में मां-बाप को पैसा और समाज में इज्जत मिलती है जिससे दोनों खुश रहते हैं 

             लेकिन एक वक्त आता है जब पैसे और समाज में इज्जत से ज्यादा उन्हें अपने बच्चों के साथ की जरूरत होती है उनकी छुअन की जरूरत होती है...वो चाहते हैं कि हमारे बच्चे हमारे पैसे की जरूरत के साथ हमारी भावनाओं को भी समझें लेकिन वो ये भूल जाते हैं कि उन्होंने अपने बच्चो को संवदेनशील होना तो सिखाया ही नहीं। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है 

बच्चे मां-बाप के साथ रहने और अपनी नई जिंदगी जिसमें खूब पैसा है दोनों को तौलकर देखते हैं तो पैसे का वजन ज्यादा निकलता है...और लौटने से इनकार कर देते हैं बस फोन पर आधा-आधूरा फर्ज निभाते रहते हैं...जो पहले रोज आता है और फिर सप्ताह में एक बार आने लगता है और फिर काम में उलझने की वजह से दिनों की संख्या बढ़ती जाती है। 

शहर-गांव हर जगह ऐसे बुजुर्गों की संख्या बढ़ती जा रही है जो अकेले रहने को मजबूर हैं बस इस झूठे सुकून के साथ कि उनके बच्चे कामयाब हैं...जबकि बुढ़ापे में पैसे से ज्यादा बड़ी समस्या है अकेलापन...

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