राजनीतिक बनने की हद इंसानियत खत्म कर रही

 राजनीतिक बनने की हद इंसानियत खत्म कर रही : ••••••••••••••••••••••••••••

इस पर कई बार कितने ही लेख लिखे जा चुके हैं पर हम है कि मानते ही नहीं। अब राजनीति सिर्फ विचारधाराओं का ही प्रश्न नहीं , अपनी ऐंठ का, वजूद का और सिर्फ अपने सच का मुद्दा बन गयी है। मेरा ये सोचना है तो ये ही सही है तुम अगर भिन्न सोचते हो तो तुम गलत होते हुए मेरे विरोधी हो या फिर शत्रु....मतलब क्या है। घर में भी एक टेबल कहाँ रखी जा सकती है इसके कई मत हो सकते हैं। पर इसके लिए मार काट लड़ाई खून खराबा क्या किया जाना उचित होगा....

जयपुर से मुंबई एक ट्रेन में एक RPF के जवान ने 4 लोगों को इसलिए आक्रोश में गोली मार दी क्योंकि या तो वह उसकी राजनीतिक विचारधारा के विरोधी लग रहे थे या फिर उस दूसरी कौम के जिनके खिलाफ नफरती माहौल बनाया जा रहा। मीडिया इस कदर गटर में जा चुकी है कि निसंदेह एक दिन उनकी ही औलादें इस तरह के वाकये का शिकार बनेंगी तब उन्हें अहसास होगा अपने फैलाये कीचड़ का ...

उधर दूसरी ओर ब्रजमंडल यात्रा के दौरान हिंसा फैलना भी इसी द्वेष का कारण है ये सब अच्छा नहीं हो रहा। आने वाली तमाम पीढियां इस नफरत का खामियाजा भुगतेंगी। 

एक नामचीन लेखक @नवनीत गुर्जर जी ने बहुत सटीक विश्लेषण किया है उनकी लिखी कुछ पंक्तियां प्रस्तुत है....

मुम्बई से कोई सौ किलोमीटर पहले एक सिपाही चलती ट्रेन में चार लोगों को गोलियों से भून डालता है। लोग कहते है कि वह गुस्सैल था। अगर गुस्सैल होता तो सामने बैठे या खड़े लोगों को मारता। लेकिन वो चार छः बोगियों में लोगों को चुन चुन कर मारता है। वो भी इसलिए कि राजनीतिक बहस करते करते उग्रवाद उसके सर चढ़ कर बोलने लगा। 

दूसरी तरफ नूंह के ब्रजमंडल यात्रा में यकायक हिंसा फैल गई। आस पास के सभी इलाकों में कर्फ्यू लगाना पड़ा। कई कई किलोमीटर तक सड़क पर जो भी वाहन दिखा उसे फूंक दिया गया। सड़क पर रेंगेते वाहनों से क्या दुश्मनी ...

वो भी उस ब्रज में जहां अगर कोई दुकान से एक जलेबी चुरा कर भाग जाए तो लोग उसके पीछे दर्शन हेतु कान्हा कान्हा कह कर भागते हैं। गऊ माता को बीच रास्ते से हटाने के लिए हाथ जोड़ कर विनती की जाती है। एक समय था...शायद था ही कहना उचित होगा। क्योंकि अब वह आत्मीयता खत्म हो गई है। लोग वहशी हो गए हैं। एक दूसरे को बर्दाश्त करने की सहनशक्ति खो रहे है। 

यही हमारा नया पनपता देश है जिस पर नेता नाज़ करते हैं क्योंकि इसी पर उनकी रोटियां सिंक रही। पर जनता पीस रही।

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