नए चलन से ढहता विकास
नए चलन से ढहता विकास :
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विकास की राह पर चलने का दिखावा करने के लिए लोग किस किस तरह की आजमाइश कर रहे ये तो उम्मीद से भी परे है। आजकल विदेशों में एक नया चलन हुआ है। विवाहोपरांत दोहरी कमाई, और बच्चा नहीं करने का निर्णय। ये सोच किस तरह अच्छी है समझ नहीं आया। हालांकि पति पत्नी मिलकर एक घर को पूरा करते हैं।पर भविष्य में बच्चे का होना घर को एक समय पर खत्म हो जाने से रोकता है। बच्चा इसलिए जरूरी नहीं कि भविष्य में परिवार का वंश चलाये रखना है। बल्कि बच्चा वर्तमान में जीने के लिए हौसले का नाम है।कई बार सामाजिक, आर्थिक और वैचारिक परिस्थितियों के द्वंद के कारण जीने की इच्छा मरने लगती है। पर जब घर में बच्चे के रूप में उम्मीद पास होती है तब जीने की लगन लगने लगती है।
बच्चा पति पत्नी को जोड़ने की भी कड़ी है। तमाम मतभेद के बाद भी पति पत्नी साथ रहते हैं। ये सोचकर कि अगर वह अलग हुए तो बच्चे का क्या होगा। लेकिन इसके विपरीत दूसरी परिस्थिति का आँकलन कीजिये। जब बच्चा नहीं होगा तो पत्नी भी स्वतंत्र होगी पति भी...हर तरह से, हर निर्णय के लिए....बाहरी जिंदगी घरेलू जिंदगी को कुतरने लगती है और एक समय घर सिर्फ सरायखाना बन कर रह जाता है। पर इसी सरायखाने को खुशियों, जिम्मदारियों, और इच्छाओं से भरपूर एक बच्चा बनाता है।
आखिर क्यों धन इतना अधिक जरूरी हो गया कि उसके आगे मानसिक खुशियों को पीछे धकेल दिया गया। नई पीढ़ी ऊलजलूल निर्णयों से अपना भविष्य तो बिगाड़ ही रही। सामाजिक चलन भी गलत चला रही।
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