शांति की खोज
शांति की खोज : •••••••••••••••••
जब तुम शांति चाहोगे और आंतरिक रूप से खुद को समझने की कोशिश करोगे , तब तुम्हें बहुत से लोगों को खोना पड़ेगा।
क्योंकि आज अधिकांश लोगों को शोर पसंद है, भीड़ भाड़ पसन्द है डीजे पसंद है। उन्हें नींद नहीं आएगी यदि ट्रेफिक का शोर सुनाई ना पड़े, लाउड स्पीकर पर नाम जाप, कीर्तन भजन और फिल्मी गाने वगैरह सुनाई ना पड़े। ये लोग आवाज़ों और चेहरों के बीच रहना चाहते हैं। हालांकि ये स्वभाव बुरा नहीं। क्योंकि व्यक्ति दूसरों के साथ व्यस्त रहकर अपनी पीड़ा भी भूलता रहता है। पर इससे आंतरिक शांति कहीं खो जाती है।
ऐसे लोग केदारनाथ जाएं या दुनिया के सबसे शांत एकांत झील के पास जाएं। वहां भी शांति का आनंद नहीं ले पाएंगे। वहां भी शायद ढोल, नगाड़ा और डीजे साथ लेकर ही जाएंगे।
इसीलिए सही मायनों में जिन्हें शांति की खोज है , उन्हें अकेले जीने की आदत बनानी होगी। खुद को समय देना होगा। यह मानकर जीना होगा कि वे इस दुनिया में अकेले आए थे, अकेले जीना है और अकेले ही दुनिया से विदा लेना है। क्योंकि कोई विदा करने भी नहीं आएगा।
शांति से जो जीना चाहते हैं, उन्हें तीर्थों, मंदिरों, धर्म स्थलों में शांति नहीं खोजनी चाहिए बल्कि उन से बहुत दूर रहना चाहिए। क्योंकि ये ऐसे पर्यटन स्थलों में रूपांतरित हो चुके हैं, जहां दुनिया के सबसे अशांत लोग शांति की खोज में आते हैं दुनिया भर का शोर और व्यवधान लेकर। इसलिए जिसने भीड़ में भी अपने अकेलेपन को स्वीकार लिया वही सही मायनों में शांति पा सका है। बाकी सब ऊपरी तौर पर अगर शांत दिख रहे हो पर अंदर से बेहद अशांत होंगे।
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