पवित्र और निःस्वार्थ स्तनपान ............. !
( पर्देदारी या वासना का दंश )

अब मैं जो आप से अपने विचार बांटूंगी उस से आप भी सहमत होंगे। जैसे की मुझे जानने के बाद लगा की ये हम क्यों नहीं मानते और सोचते ? आप ने यदा कदा किसी स्त्री को अपने बच्चे को स्तनपान कराते देखा तो जरूर होगा। और ये भी देखा होगा की वह स्त्री अपने स्तन और शिशु को अपने आँचल या या दुप्पट्टे से ढक कर स्तनपान कराती है। इसका धार्मिक स्पष्टीकरण ये है की किसी की नजर न लगे। परंतु वास्तविक स्पष्टीकरण आप न सुनना चाहेंगे न ही मानना। वह है स्तनपान को सार्वजनिक स्थान के लिए उपयुक्त न माना जाना और पुरुष की गलत नजर से बचना।
इसका ज्वंलत उदाहारण है एक घटना जिसमें एक विवाहित युवती अपने माता पिता और छोटे दुधमुँहे बच्चे के साथ रेस्टॉरेंट में खाना खाने गयी। कुछ देर बाद ही उसका बच्चा भूख के कारण रोने लगा। उसने खाना खाते खाते ही उसे स्तनपान कराना प्रारम्भ कर दिया। आस पास बैठे सभी लोग उसे अप्रत्याशित निगाहों से देखने लगे। तब उसके पिता ने उसे टोकते हुए एक रुमाल दिया की अपना स्तन ढ़को। इस तरह सार्वजनिक तौर पर स्तन खोल कर दूध पिलाना उचित नहीं है। उस युवती को ये बात अच्छी नहीं लगी। उसने अपने पिता को ये स्पष्टीकरण देना चाहा कि दूध पिलाना एक नैसर्गिक क्रिया है। और हर इंसान इस पवित्र और निस्वार्थ देन से परिचित है। सब ने अपनी माँ के स्तन से निकलने वाले दूध से अपने जीवन को आगे बढ़ाया है। और फिर उसने स्तन अपने छोटे बच्चे के लिए खोला है न कि किसी पुरुष के सामने अपने शारीरिक प्रदर्शन के लिए तो इसमें गलत क्या है। परंतु यह बात न तो उसके पिता को समझ आई न ही आस पास बैठे उन तमाम असभ्य लोगों को।जो बेवजह घूर के इसे अशोभनीय घटना बना रहे थे।
मैं तो खुद इस घटना के पीछे छिपी मानसिकता को समझ नहीं पा रही। क्या आप ने किसी जानवर को अपने बच्चे को छुप छुपा कर दूध पिलाते देखा है। नहीं ना .....तो ये तो हमारे समाज की घृणित मानसिकता का परिचायक है। जिसमें पुरुष उस पवित्र कार्य में भी अपनी वासना का जहर घोल रहा है। कल्पना कीजिए एक माँ की उस प्रतिमूर्ति की जो अपने बच्चे को स्तन से लगा कर उसे प्यार से निहारति हुई दूध पिला रही है। कितना सुख और सौंदर्य भरा रहता है उस ममता में। जैसे की जीवन का बस एक सत्य यही है कि माँ का दूध वह अमृत है जिस के सहारे हम अपने जीवन की धुरी पर आगे बढ़ सकते हैं। माँ...... .... इस एक शब्द से उस दूध के तमाम क़र्ज़ याद आ जाते हैं जो जन्मते ही माँ ने अपनी संतान पर चढ़ा दिए हैं। फिर इसमें क्यों पर्देदारी और दुराव छुपाव। खुल के एक माँ को अपनी संतान का पेट भरने दो और याद करो अपनी उस माँ को जिसने कभी तुम्हारा भी पेट ऐसे ही भरा था।
( पर्देदारी या वासना का दंश )

अब मैं जो आप से अपने विचार बांटूंगी उस से आप भी सहमत होंगे। जैसे की मुझे जानने के बाद लगा की ये हम क्यों नहीं मानते और सोचते ? आप ने यदा कदा किसी स्त्री को अपने बच्चे को स्तनपान कराते देखा तो जरूर होगा। और ये भी देखा होगा की वह स्त्री अपने स्तन और शिशु को अपने आँचल या या दुप्पट्टे से ढक कर स्तनपान कराती है। इसका धार्मिक स्पष्टीकरण ये है की किसी की नजर न लगे। परंतु वास्तविक स्पष्टीकरण आप न सुनना चाहेंगे न ही मानना। वह है स्तनपान को सार्वजनिक स्थान के लिए उपयुक्त न माना जाना और पुरुष की गलत नजर से बचना।

इसका ज्वंलत उदाहारण है एक घटना जिसमें एक विवाहित युवती अपने माता पिता और छोटे दुधमुँहे बच्चे के साथ रेस्टॉरेंट में खाना खाने गयी। कुछ देर बाद ही उसका बच्चा भूख के कारण रोने लगा। उसने खाना खाते खाते ही उसे स्तनपान कराना प्रारम्भ कर दिया। आस पास बैठे सभी लोग उसे अप्रत्याशित निगाहों से देखने लगे। तब उसके पिता ने उसे टोकते हुए एक रुमाल दिया की अपना स्तन ढ़को। इस तरह सार्वजनिक तौर पर स्तन खोल कर दूध पिलाना उचित नहीं है। उस युवती को ये बात अच्छी नहीं लगी। उसने अपने पिता को ये स्पष्टीकरण देना चाहा कि दूध पिलाना एक नैसर्गिक क्रिया है। और हर इंसान इस पवित्र और निस्वार्थ देन से परिचित है। सब ने अपनी माँ के स्तन से निकलने वाले दूध से अपने जीवन को आगे बढ़ाया है। और फिर उसने स्तन अपने छोटे बच्चे के लिए खोला है न कि किसी पुरुष के सामने अपने शारीरिक प्रदर्शन के लिए तो इसमें गलत क्या है। परंतु यह बात न तो उसके पिता को समझ आई न ही आस पास बैठे उन तमाम असभ्य लोगों को।जो बेवजह घूर के इसे अशोभनीय घटना बना रहे थे।
मैं तो खुद इस घटना के पीछे छिपी मानसिकता को समझ नहीं पा रही। क्या आप ने किसी जानवर को अपने बच्चे को छुप छुपा कर दूध पिलाते देखा है। नहीं ना .....तो ये तो हमारे समाज की घृणित मानसिकता का परिचायक है। जिसमें पुरुष उस पवित्र कार्य में भी अपनी वासना का जहर घोल रहा है। कल्पना कीजिए एक माँ की उस प्रतिमूर्ति की जो अपने बच्चे को स्तन से लगा कर उसे प्यार से निहारति हुई दूध पिला रही है। कितना सुख और सौंदर्य भरा रहता है उस ममता में। जैसे की जीवन का बस एक सत्य यही है कि माँ का दूध वह अमृत है जिस के सहारे हम अपने जीवन की धुरी पर आगे बढ़ सकते हैं। माँ...... .... इस एक शब्द से उस दूध के तमाम क़र्ज़ याद आ जाते हैं जो जन्मते ही माँ ने अपनी संतान पर चढ़ा दिए हैं। फिर इसमें क्यों पर्देदारी और दुराव छुपाव। खुल के एक माँ को अपनी संतान का पेट भरने दो और याद करो अपनी उस माँ को जिसने कभी तुम्हारा भी पेट ऐसे ही भरा था।
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