भय........!
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आज का विषय सभी के मन की एक भावना के साथ जुड़ा हुआ है। वह भावना है डर ...... यूँ तो नहीं हुआ होगा की हम सभी अपने जीवन में कभी भी ,किसी भी परिस्थिति में डरे न हों । यह डर किसी अप्रत्याशित को लेकर भी हो सकता है और यह डर हमारे सामने चल रही सकारात्मक परिस्थिति के बदल जाने का भी हो सकता है।  अर्थात हम ख़ुशी में भी डरते है दुःख में भी।  यह डर मन के साथ साथ शरीर पर भी अपना प्रभाव दिखाता है। इस डर को अगर गलत माना जा रहा हो तो यह भी गलत है।  क्योंकि यही डर जीवन में कुछ अच्छा करने की भी शक्ति देता है। यह डर हमें आने वाली विपरीत परिस्थितियों से सतर्क और सुरक्षित बनाता है। अगर पुलिस या जेल का डर न हो तब तो हर कोई अपराधिक  गतिविधियां खुले आम करने लगे।  लेकिन यही डर उनके लिए एक सीमा का काम करता है।  यह डर जीवन के कई पहलुओं में सकारात्मक भूमिका निभाता है। परंतु इस के विपरीत यदि ये डर बहुत बढ़ जाए और भयभीत करने लगे तब ये तनाव बन जाता है। किसी भी इंसान को सबसे ज्यादा कोई प्रभावित करता है तो वह है अचानक होने वाला कोई भी परिवर्तन। लेकिन इन बदलाव को अपने व्यव्हार और संयत भूमिका से हम डर की परिधि से बाहर निकाल सकते हैं अर्थात बदलाव की नकारात्मकता को काफी हद तक कम करके उसे अपने अनूरूप बनाया जा सकता है। 
                                                                 अब इस पहलु पर गौर करें की यह डर किस प्रकार सकारात्मक भूमिका निभाता है। डर हमें किसी परिस्थिति , व्यक्ति या स्थान के प्रति सजग , सतर्क और सुरक्षित बनाता है यह डर अंदेशें के रूप में मन के भीतर बैठा रहता है। अर्थात एक चिंता जो  निर्णय लेने में पुनः सोचने को बाध्य करती है। जब भी इंसान किसी निर्णय के लिए त्वरित रूप से तैयार न हो पा रहा हो तब स्थिति डर वाली हो सकती है क्योंकि उस समय वह अपने निर्णय के परिणामस्वरूप आने वाली परिस्थिति से डर रहा होता है। उसे आभास हो रहा होता है की ये कर्म इस तरह के परिणाम दे सकता है।  यही इस डर का सकारात्मक पहलु है जो किसी व्यक्ति को गलत कार्य करने से पहले ही उसके दुष्परिणामों के प्रति सजग करते हैं। साथ ही यह डर अनावश्यक तनाव का भी कारण बनता है क्योंकि हम बिना किसी जांच परख के किसी स्थिति की परिस्थिति का आंकलन कर लेते हैं। जबकि होता कुछ और है।  अर्थात कहने का अर्थ यह है कि डर अच्छा है यदि उससे अपना भविष्य बेहतर बनाए की प्रेरणा मिले अन्यथा वह पैरों की बेड़ियाँ बन जाता है। 

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