एक कविता स्त्री के नाम ........! 
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नारी जीवन दायिनी ,
नारी है एक वरदान।
जन्म दिया माँ बनकर ,
फिर पत्नी बन संतान।
       नारी कोमल निर्मला ,
       यह होती फूल समान।
       वक्त पड़े तो बन जाए 
       फिर बरछी तीर कमान। 
छाया सी सर पर रहे ,
नारी वट वृक्ष समान। 
सृजन कर परिवार की ,
बनाये अलग पहचान। 
       नारी के अंतर बसे ,
      सहनशीलता आन। 
      मूरत त्याग की है ये ,
      नित्य करे बलिदान। 
नारी को मत मानना ,
दुर्बल अबला जान। 
संकट में देवी रूप धरे  ,
ये है एक तूफान। 
      युगों युगों से ये जगत ,
      जो बना पुरुष प्रधान। 
      पग पग पर है रोकता,  
      हर नारी का उत्थान। 
सम्पूर्णता की परिभाषा,
है नारीत्व का अभिमान ,
अपनी कृति पर युगों से,
गर्वित है भगवान। 
       जितना गाओ कम लगे ,
       नारी का गुणगान। 
       कण कण अब करेगा ,
       नारी का संम्मान। 
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