दो लब्जों की परवाह ...😊
दो लब्जों की परवाह...! !
🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸
दौलत नहीं, शोहरत नहीं
ना वाह -वाह चाहिये...
कहाँ हो ? कैसे हो ?
दो लब्जों की परवाह चाहिये।
इच्छाओं के अनुरूप जीने के
लिए सुकून चाहिए ,
परिस्थितियां को बदलने के
लिए जुनून चाहिए ।
सवाल सुलझाने के लिए
सुनने का सब्र चाहिए।
गर फिर उलझ गए तो
सुलझाने की फ़िक़्र चाहिए।
अनुमान मन की कल्पना है
अनुभव को जिंदगी बनाने ,
के लिए पारंगत हुनर चाहिए ।
प्यार बाँटना सीखने को ,
परवाह की काबिलियत चाहिए।
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दौलत नहीं, शोहरत नहीं
ना वाह -वाह चाहिये...
कहाँ हो ? कैसे हो ?
दो लब्जों की परवाह चाहिये।
इच्छाओं के अनुरूप जीने के
लिए सुकून चाहिए ,
परिस्थितियां को बदलने के
लिए जुनून चाहिए ।
सवाल सुलझाने के लिए
सुनने का सब्र चाहिए।
गर फिर उलझ गए तो
सुलझाने की फ़िक़्र चाहिए।
अनुमान मन की कल्पना है
अनुभव को जिंदगी बनाने ,
के लिए पारंगत हुनर चाहिए ।
प्यार बाँटना सीखने को ,
परवाह की काबिलियत चाहिए।
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