There is no court of appeal ......एक बच्ची की अनसुनी गुहार....😡
एक बच्ची की अनसुनी गुहार...😡
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आठ वर्ष की छोटी सी मासूम उम्र...खेलते और कूदते हुए मस्ती करने के दिन...हमउम्र दोस्तों के साथ उन्हीं की तरह सोचने समझने के दिन ....शायद यही बचपन है। जी हां शायद नहीं बिल्कुल यही बचपन है। क्योंकि हम बड़े होकर बचपने की सोच और उनकी मासूमियत भूल जाते हैं।
"अंकल प्लीज मुझे छोड़ दो। जो करना है कर लो पर मुझे मारना नहीं। मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ किसी से कुछ नहीं बताऊंगी पर मुझे जान से मत मारना।" ये गुहार है अपनी जान की भीख मांगती सिर्फ आठ साल की वह छोटी सी बच्ची ...जो शायद थोड़ा थोड़ा समझ पा रही थी कि उसके साथ क्या होने जा रहा है।
मासूमियत से जुड़ा ये सच्चा वाक्या जाने। आगरा शहर के सेंट जॉन्स चौराहे पर एक सैलून चलाने वाला एक नौजवान लड़का रोज़ ही अपने सैलून में काम करते हुए बाहर देखता रहता था। जहाँ मोहल्ले के बहुत से बच्चे खेलते कूदते रहते थे। ये बच्ची भी अपने संगी साथीयों के साथ वही खेलती थी। नौजवान उसे रोज देखता था। पर उस दिन जब उसने अत्यधिक शराब पी रखी थी। तो शायद उसे वह बच्ची औरत नज़र आने लगी। वह उसे खेल के बाद चुपके से उठा ले गया और एक सुनसान मैदान में ले जाकर उसके कपड़े फाड़ने शुरू किया। तब बच्ची ने गुहार लगानी शुरू की। अंकल प्लीज़ जान से मत मारना मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी.....पर बेसुध दरिंदे को ये सब सुनाई कहाँ दिया। उसने बच्ची के साथ वहशीपन किया। पर बाद में उसके रोने गिड़गिड़ाने को अनसुना करके उसी की सलवार से उसका गला घोंट दिया। खत्म हो गई एक छोटी सी कहानी। जो दो चार घड़ी के सुख के लिए रची गई। जिसमें एक आठ साल की बच्ची ने परिपक्व औरत का किरदार निभाया।
शर्म आने लगती है खुद पर कि मैं औरत होकर , मां होकर , ये सब सुन रही हूँ , जान रही हूँ , बस कुछ कर नहीं पा रही। क्योंकि अब लोगों को , सरकारों को , प्रशासन को इस तरह की घटनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता है । करोड़ों की आबादी में अगर कुछ बच्चियाँ औरतें इस तरह बलि चढ़ गई तो भी कौन सा नुकसान होने वाला है ।
इस घटना में सबसे ज्यादा तकलीफदेह बात ये नज़र आई कि वह बच्ची कुछ हद तक समझ गयी कि उसके साथ कुछ बुरा होने वाला है। पर चूंकि वह कमजोर थी असहाय थी इस लिए सिर्फ गिड़गिड़ाती ही रह गयी।
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आठ वर्ष की छोटी सी मासूम उम्र...खेलते और कूदते हुए मस्ती करने के दिन...हमउम्र दोस्तों के साथ उन्हीं की तरह सोचने समझने के दिन ....शायद यही बचपन है। जी हां शायद नहीं बिल्कुल यही बचपन है। क्योंकि हम बड़े होकर बचपने की सोच और उनकी मासूमियत भूल जाते हैं।
"अंकल प्लीज मुझे छोड़ दो। जो करना है कर लो पर मुझे मारना नहीं। मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ किसी से कुछ नहीं बताऊंगी पर मुझे जान से मत मारना।" ये गुहार है अपनी जान की भीख मांगती सिर्फ आठ साल की वह छोटी सी बच्ची ...जो शायद थोड़ा थोड़ा समझ पा रही थी कि उसके साथ क्या होने जा रहा है।
मासूमियत से जुड़ा ये सच्चा वाक्या जाने। आगरा शहर के सेंट जॉन्स चौराहे पर एक सैलून चलाने वाला एक नौजवान लड़का रोज़ ही अपने सैलून में काम करते हुए बाहर देखता रहता था। जहाँ मोहल्ले के बहुत से बच्चे खेलते कूदते रहते थे। ये बच्ची भी अपने संगी साथीयों के साथ वही खेलती थी। नौजवान उसे रोज देखता था। पर उस दिन जब उसने अत्यधिक शराब पी रखी थी। तो शायद उसे वह बच्ची औरत नज़र आने लगी। वह उसे खेल के बाद चुपके से उठा ले गया और एक सुनसान मैदान में ले जाकर उसके कपड़े फाड़ने शुरू किया। तब बच्ची ने गुहार लगानी शुरू की। अंकल प्लीज़ जान से मत मारना मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी.....पर बेसुध दरिंदे को ये सब सुनाई कहाँ दिया। उसने बच्ची के साथ वहशीपन किया। पर बाद में उसके रोने गिड़गिड़ाने को अनसुना करके उसी की सलवार से उसका गला घोंट दिया। खत्म हो गई एक छोटी सी कहानी। जो दो चार घड़ी के सुख के लिए रची गई। जिसमें एक आठ साल की बच्ची ने परिपक्व औरत का किरदार निभाया।
शर्म आने लगती है खुद पर कि मैं औरत होकर , मां होकर , ये सब सुन रही हूँ , जान रही हूँ , बस कुछ कर नहीं पा रही। क्योंकि अब लोगों को , सरकारों को , प्रशासन को इस तरह की घटनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता है । करोड़ों की आबादी में अगर कुछ बच्चियाँ औरतें इस तरह बलि चढ़ गई तो भी कौन सा नुकसान होने वाला है ।
इस घटना में सबसे ज्यादा तकलीफदेह बात ये नज़र आई कि वह बच्ची कुछ हद तक समझ गयी कि उसके साथ कुछ बुरा होने वाला है। पर चूंकि वह कमजोर थी असहाय थी इस लिए सिर्फ गिड़गिड़ाती ही रह गयी।
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