अभी और फिर कभी के चुनाव में प्राथमिकता :

अभी और फ़िर कभी के चुनाव में प्राथमिकता : 👍                       •••••••••••••••••••••••••••••     मनुष्य के दिमाग़ में कुछ ना कुछ सदैव चलता ही रहता है। कुछ बातें ,कुछ यादें और कुछ घटनाएं .....उनके आधार पर कभी कभी वर्तमान में निर्णय भी लेने पड़ते हैं। इन निर्णयों को लेने के लिए हमें या तो अभी या फ़िर कभी का चुनाव करना होता है। कि वो प्राथमिकता में किस पायदान पर बैठ रही हैं। अगर उसकी जरूरत तुरंत है और वह अपने पूर्ण प्रभाव से हमारा समाधान कर सकेगा तो वह निर्णय तुरंत लेना चाहिए। नहीं तो फिर कभी पर छोड़ कर उसका उपयुक्त समय आने का इंतेज़ार करना चाहिए।                                                                  उदाहरण से समझिए अर्जुन की युद्धकौशल से प्रभावित होकर हनुमान जी ने अर्जुन से कहा कि मैं तुम्हारे रथ की ध्वजा पर विराजमान रहूंगा। तुम्हें सदैव विजय मिले ये आश्वस्त कराऊंगा। अर्जुन ने ये बात जब कृष्ण जी से कही तो कृष्ण ने उस प्रस्ताव को 'फिर कभी' कहकर टाल दिया। लेकीन जब महाभारत का युद्ध हुआ तो कृष्ण ने अर्जुन से कह कर हनुमान जी को विनती कर उन्हें ध्वजा पर विराजने का निमंत्रण दिया। उस समय हनुमान जी का ध्वजा पर होने का साथ अर्जुन के लिए फलदायी रहा। 

यही अंतर है अभी और फिर कभी का। निर्णय लेने से पहले उसके लिए लिए जा रहे कदमों की प्राथमिकता तो तय होनी चाहिए साथ में उस निर्णय से उत्पन्न प्रभावों के प्रतिशत का भी आंकलन करना चाहिए। कभी कभी कुछ निर्णय समय पर ये सोचकर छोड़िए की फ़िर कभी। जरूरी नहीं की वो आज ही पूरे किए जाए। क्या पता बाद का समय उस के लिए ज्यादा प्रभावशाली हो। हर जगह हर समय ये युक्ति उपयुक्त नहीं होती कि....काल करे सो आज कर , आज करे सो अब...पल में परलय होएगी बहुरि करेगा कब।।                                               ◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆




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