स्टैण्डर्ड और लेवल से जुड़ी सोच
स्टैंडर्ड और लेवल से जुड़ी सोच!!•••••••••••••••••••••••••••••
आख़िर कभी सोचा है कि स्टैंडर्ड की क्या परिभाषा है , जिंदगी के एक निश्चित पैटर्न से हट कर कुछ करें तो ही क्या हम अपने स्टैण्डर्ड को लोगों को दिखा पाएंगे ? ? आजकल के बच्चे यही सोचते हैं । उन्हें लीक से हट कर वह सब कुछ करना पसंद है जो नए एडवेंचर जैसा हो।
उदाहरण के लिए देखिए मकर संक्रांति पर हर घर में तिल के लडडू और गजक जैसी चीज़े बनाई जाती है। प्रसाद के रूप में सूर्य भगवान को चढ़ाई जाती है। हमें अपनी उम्र के अनुसार ये चीजें पसन्द हैं और ये भी पता है कि ये स्वास्थ्यवर्धक हैं। पर बच्चे चॉकलेट खाना पसंद करेंगे पर तिल गुड़ के लडडू नहीं क्योंकि शायद ये स्टैंडर्ड से जुड़ा सवाल है। उन्हें तिल गुड़ के लडडू गांव type पुरानी परंपरा से जुड़े और थोड़े बैकवर्ड टाइप लगते हैं इसी तरह सर्दियों में ज्यादातर घरों में dry fruits के लडडू भी बनते हैं । जिन्हें आमतौर पर सुबह या रात को दूध के साथ खाया जाता है। ताक़त और गर्मी के लिए ये जरूरी भी होता है। पर बच्चे इन्हें भी पसन्द नहीं करते। वजह फिर वही...कि ये थोड़ी बैकवर्ड choices हैं।
अब advance choices क्या होती है...क्या noodles , pasta , burgers या फिर macroni type चीजें...क्या यही ऊंचे level की पसन्द है।
जब बच्चों को health और taste के बीच में अच्छा बुरा समझ आएगा। उसी दिन ये स्टैण्डर्ड वाला फंडा भी खत्म हो जाएगा।
अब एक उदाहरण और समझिए....एक उम्र हो जाने पर जिंदगी जीने का तरीका बदल जाता है। तब शायद रोज की प्राथमिकताएं समझ आने लगती हैं। कुछ जरूरतें और कुछ जिम्मेदारियां जरूरी लगने लगती हैं। पर बच्चे मौज मस्ती को ही जिंदगी समझते हैं जैसे long drive पर जाना उन्हें लिए जिंदगी खुश होकर जीने का तरीका हैं। और हम बड़ों के लिए वह टाइम खराब करने या पैसों की फिजूलखर्ची ...यही अंतर है स्टैंडर्ड और real जीवन जीने में.......हो सकता है कि एक उम्र आने पर बच्चे भी ये समझ जाएंगे पर जब तक समझ नहीं आती तब तक वह अपना क़ीमती समय , स्वास्थ्य और संचित धन में से काफी कुछ गवां चुके होते हैं ....!!
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