कम ज्यादा की तुलना

कम ज्यादा की तुलना...!!    •••••••••••••••••••••••••


 हम आजकल कैसी जिंदगी जी रहे हैं ? ? व्यस्तताओं और जद्दोजहद की....यही सोचते है हम सब। 

समय कम है , धन कम है , सुविधाएं कम है , प्यार कम है , आदि आदि...मतलब सब कुछ कम है । ज्यादा क्या है .....चिंताएं , तनाव , परेशानियां , जूझना , यही सब ज्यादा है हमारे पास। और हम रोज इन्हें और बढ़ा देते हैं। सोच सोच कर। कह कह कर की ये कम है वो कम है वगैरह। आख़िर क्यों हम इन कमियों के बावजूद जी रहे हैं। क्योंकि ईश्वर ने जितनी जिंदगी दी है जीनी तो हैं। तो ये सोचा जाए कि जिंदगी जीनी ही है तो कम कम का रोना रो कर क्यों जिये....जो पास है उसके होने के सुकून के साथ क्यों ना जिये.....

कभी-कभी तो बीत जाती है सदियां                        इतना सा समझने में                        

 कि आख़िर में हाँसिल करना क्या है।                      जबकि महज़ इतना भी          

  मालूम नहीं कि जो कुछ मिला हुआ है                      उसमें स्वीकारना क्या है         

अक्सर बहुत की चाह में हम थोड़े का                         महत्व नहीं समझते हैं।          

 प्यासे को दो घूंट मिल जाये....काफ़ी है                       समंदर सा भरना क्या है     

 ज़िन्दगी में आत्मसंतुष्टि असल खुशी है                    इच्छाओं का बोझ मन पर ले                            पूर्ति की चाह की पीड़ा सहना क्या है

यही जीवन का सत्य है ।कम कम के चक्कर में हम हाँसिल हुई खुशियों के अंदर छुपी वजह को कम आंकने लगते हैं। जिससे उसका मज़ा नहीं उठा पाते। और हमेशा असंतुष्ट से रहते हैं। 

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